उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी से न्यायिक अतिक्रमण
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के विरूद्ध लगाए गए मानहानि के आरोपों पर अपनी टिप्पणी दी है। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि अगर श्री गांधी एक ‘सच्चे भारतीय’ होते, तो वे ऐसा नहीं कहते, जैसा उन्होंने कहा। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्याय के स्थापित मानदंडों में एक चिंताजनक बदलाव को दिखाता है।
कुछ बिंदु –
- एक लोकतंत्र में सच्चा नागरिक वह होता है, जो निडर होकर सच्चाई का पीछा करता है। इसके लिए उसे चाहे सरकार से असहमति ही क्यों न दिखानी पड़े या सरकार को जवाबदेह क्यों न ठहराना पडे। स्वतंत्र एवं सार्वजनिक बहस लोकतंत्र का आधार है।
- राहुल गांधी संसद में विपक्ष के नेता हैं। उन्होंने सरकार की सीमा नीतियों पर सवाल उठाए और चीनी घुसपैठ की विश्वसनीय रिपोर्टों पर ध्यान खींचा है। यह विपक्षी राजनीति के वैध दायरे में आता है।
- विपक्षी दल की ऐसी आलोचना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से संरक्षित है। यह स्वस्थ सार्वजनिक संवाद के लिए जरूरी है।
- गांधी के वक्तव्य सार्वजनिक और सरकारी स्रोतों पर आधारित हैं। ओपन सोर्स सैटेलाइट इमेजरी, संसदीय चर्चाओं और पत्रकारिता रिपोर्टों ने गलवान घाटी संघर्ष के बाद की स्थिति को दस्तावेज बनाया है। इनमें राहुल गांधी की बातों की पुष्टि होती है। अतः न्यायालय को नैतिक या देशभक्तिपूर्ण निर्णय देने के बजाय कानूनी प्रश्नों के कठोर और निष्पक्ष न्याय पर समय और ऊर्जा लगानी चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 07 अगस्त 2025