सन् 2030 तक 10 करोड़ नौकरियां पैदा करने की बड़ी चुनौती

Afeias
02 Nov 2024
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परिचय – हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में तथा आने वाले विधानसभा चुनावों में बेरोजगारी एक सर्वाधिक चर्चित मुद्दा रहा था। आईएमएफ की उप प्रबंध निदेशक गीता गोपीनाथ ने दिल्ली में एक भाषण के दौरान कहा कि 2030 तक भारत को कम से कम 6 करोड़ रोजगार पैदा करने होंगे। इसे कुछ अर्थशास्त्री 10 करोड़ भी मानते हैं।

  • देश की 1 अरब 44 करोड़ आबादी में 52 करोड़ लोग विभिन्न तरह के श्रमिकों के रूप में भागीदारी कर रहे हैं। इसमें 5 करोड़ लोग काम की तलाश में हैं। इसमें हर साल 1 करोड़ की वृद्धि हो जाती है।

भारत का एलएफपीआर दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले कम है। स्त्रियों के संदर्भ में यह स्थिति और भी बेकार है।

  • जिनको रोजगार मिला है, उनका वेतन भी बहुत अच्छा नहीं है। सिर्फ 4 करोड़ नियमित वेतनभोगी हैं। शेष गरीब श्रमजीवी हैं। मनरेगा में औसत आमदनी 3,915 रुपये, अस्थाई श्रमिकों की 7254 रुपये तथा स्वरोजगार से औसत आमदनी 13,339 रुपये है। आकर्षक प्रतीत होने वाले वेतनभोगी प्रतिमाह केवल 20,049 ही कमाते हैं। इनमें से 2-2.5% ही सरकारी क्षेत्र में हैं।
  • बेरोजगार सामन्यतः चार प्रकार के होते हैं। एक वे जिनके पास तलाशने के बावजूद रोजगार नहीं है। दूसरे वे 8% हैं, जिन्हें 24 घंटे से भी कम काम मिलता है। 16% को 36 घंटे से भी कम काम मिलता है। तीसरे वे जो खेत या दुकान पर काम करते तो हैं, लेकिन उन्हें बेकार बैठना पड़ता है। चौथे जिन्होंने निराश होकर काम ढूंढ़ना ही बंद कर दिया है।

सरकारी निवेश में विशुद्ध बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। राज्य और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का निवेश भी कम है। स्वरोजगार के लिए चलाई गई मुद्रा स्कीम से मिलने वाला ऋण केवल 27000 रुपये है। इसमें एक ठेला या रेहड़ी ही खरीदा जा सकता है।

उक्त पृष्ठभूमि से स्पष्ट है कि सन् 2030 तक दस करोड़ रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पाना बहुत ही कठिन होगा।

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