संविधान का अतिसन्धान करता प्रस्तावित विचार
Date:20-11-20 To Download Click Here.
उत्तरप्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक राज्य ‘लव जिहाद’ के विरूद्ध कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं। उनका यह कदम आपसी संबंधों की निजता का अतिक्रमण करने वाला ऐसा कदम माना जाना चाहिए, जिसका लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है।
हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक को स्वेच्छा से विवाह करने और आस्था की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हमारी सरकारों को नागरिकों के इन निर्णयों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। बीते फरवरी में ही केंद्रीय गृह मंत्री ने संसद को बताया था कि देश में ‘लव जिहाद’ जैसे प्रचार पर कोई कानून नहीं है, क्योंकि हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने व उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।
पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व से जुड़े कुछ अभियानों ने मुस्लिम पुरूषों द्वारा हिंदू महिलाओं को लुभाने और उनका धर्म परिवर्तित करने की साजिश की आशंकाएं व्यक्त की थी। इसका उपयोग हिंदू-मुस्लिम प्रेम और मेल-मिलाप को बंद करके जनसांख्यिकीय प्रभुत्व के एक खेल में झोंक देने के लिए किया गया। वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं है।
कानून में इस प्रकार के जहरीले पूर्वाग्रह को शामिल करके कुछ नेता संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को क्षति पहुँचा रहे हैं। ऐसा करके वे अपने राज्य को शिक्षा के अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में कैसे विकसित कर सकेंगे ? जिन स्थानों पर समुदायों के बीच परस्पर सद्भाव न हो, और न ही विचारों का मुक्त आदान-प्रदान हो, वहां व्यवसाय और शिक्षा के विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है? देश के दो मुख्यमंत्रियों के इस कानून पर विचार के पीछे उनकी कार्यप्रणाली या घटनाओं की पृष्ठभूमि है। परंतु उनसे निपटने के लिए पहले ही देश में अनेक कानून बने हुए हैं।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक ढाल के रूप में प्रस्तावित ऐसा कानून उनके हित में नहीं है। इस प्रकार के कानून से वयस्कों को अपनी पसंद बनाने के लिए स्वतंत्र सहमति से बाधित किया जा रहा है। यह एक ऐसा विचार है, जो बहन-बेटियों को नियंत्रित करने के लिए सभी पितृसत्तात्मक समाजों की आवश्यकता को पूरा करता है। यह एक ऐसा विचार है, जिस पर कानून बनाने का समय कभी नहीं आना ही देशहित में है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधरित। 4 नवम्बर, 2020