सहायता प्राप्त मृत्यु या असिस्टेड डाइंग का भारतीय सरोकार

Afeias
21 Jul 2025
A+ A-

To Download Click Here.

  • 1997 और 2015 में खारिज होने के बाद यू.के. के हाउस ऑफ कामन्स ने असिस्टेंड डाइंग को अनुमति दे दी है।
  • कानून के अनुसार गंभीर रूप से बीमार और छह महीने के भीतर मरने की संभावना वाले मरीज मृत्यु के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  • इस कानून को चार साल (2029) के भीतर लागू करना होगा। निचले सदन से पारित हुए इस बिल पर अगर ऊपरी सदन में देरी होती है, तो बिल खत्म हो जाएगा।
  • इस कानून के अनुसार कोई अन्य व्यक्ति मृत्यु प्रक्रिया में भाग लेने को बाध्य नहीं है। मरीज को दवाएं स्वयं ही लेनी होगी।
  • यह कानून इतना महत्वपूर्ण इसलिए है कि इस विषय पर कानून बनाना आसान नहीं है। इसमें निहित डर और आशंकाएं वास्तविक हैं। कमजोर, वृद्ध और विकलांग लोगों की देखभाल और खर्च का बोझ उठाने वाले परिवार इस कानून की आड़ में गलत भी कर सकते हैं।
  • यू.के. कानून के अनुसार दुर्भावना से दी गई मृत्यु पर 15 साल जेल हो सकती है।
  • भारत में वैसे ही ईलाज तक पहुँच की कमी और ईलाज के खर्च को वहन न करने की शक्ति के कारण मरीज को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है।
  • इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने उपचार से इंकार करने के व्यक्तिगत अधिकार को बरकारार रखा है। यह अपने आप में इच्छामृत्यु जैसा ही है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 मई, 2025