राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा की अच्छी राजनीति
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राज्यों को अपने औद्योगिक निवेश को लगातार बढ़ाने की जरूरत है। अभी तक यह कुछ गिने-चुने राज्यों की तरफ का रुझान किए हुए है। हाल ही में वेदांता-फॉक्सकॉन सेमीकंडक्टर प्रोजेक्ट पर गुजरात और महाराष्ट्र के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही थी। अंततः यह परियोजना गुजरात की झोली में गई है। राज्य सरकारों के बीच इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा या राजनीति को सकारात्मक माना जाता है।
कुछ बिंदु –
- यह इस प्रकार की राजनीति है, जो राज्य सरकारों को निजी निवेश लपकने को प्रेरित करती है। इससे भी बेहतर राजनीति नौकरी और जीवन स्तर में वृद्धि जैसे शीर्ष सूची वाले मुद्दों पर हो सकती हैं, जिन पर पार्टियां बहस करती हैं, और मतदाता ध्यान देते हैं।
- मुफ्त उपहारों के प्रतिस्पर्धी वायदों के इर्द-गिर्द चलने वाली राजनीति खराब किस्म की है, क्योंकि अगर वर्तमान में नीतिगत सोच पर मुक्तखोरी हावी है, तो भविष्य अनिवार्य रूप से अंधकारमय होगा।
- अच्छी खबर यह है कि मुफ्त की राजनीति के बावजूद, कुछ राज्य बड़े-बड़े विदेशी निवेश के लिए होड़ कर रहे हैं। अपने मानव पूंजी संसाधनों, सड़क, डिजिटल कनेक्टिविटी और मल्टीमॉडल बुनियादी ढांचे का प्रदर्शन करके इसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं। यहाँ तक कि आर्थिक रूप से पिछड़ा यूपी भी इस प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रहा है।
- अधिकांश राज्यों में बिजली और पानी की टैरिफ रियायतों, स्टांप शुल्क व संपत्ति कर से छूट, पूंजीगत सब्सिडी आदि का प्रोत्साहन पेश करने वाली इलेक्ट्रॉनिक्स और विनिर्माण नीतियां हैं। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक राज्य काफी आगे चल रहे हैं। सबसे आगे आंध्रप्रदेश चल रहा है। सबसे ज्यादा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पाँच राज्यों में जाता है। तमिलनाडु की औद्योगिक नीति का स्थिर होना उसकी विशेषता है। 87% एफडीआई इन्हीं पाँच राज्यों को जाता है।
- समग्र रूप से भारत के लिए विविधीकरण एक बड़ी समस्या है। सेवाएं, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर हार्डवेयर और टेलीकॉम ही आज नई परियोजनाओं पर हावी हैं। विनिर्माण (विशेषतः लाइट मैनूफैक्चरिंग) में नए निवेश की आवश्यकता है।
- राज्यों को निवेश के प्रति सकारात्मक औद्योगिक नीति रखने के साथ ही भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों को सुलझाना चाहिए। इसका उदाहरण गुजरात और बंगाल के बीच के अंतर में मिलता है।
देश के अन्य राज्यों में भी विनिर्माण निवेश को आकर्षित करने की क्षमता है। लेकिन इन्हें व्यापार में सुगमता जैसे मानदंड़ों पर खरा उतरने की जरूरत होगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 सितम्बर, 2022