रचनात्मक अर्थव्यवस्था के मायने

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11 Jun 2025
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हाल ही में प्रधानमंत्री ने मुंबई में विश्व ऑडियो विजुअल और मनोरंजन शिखर सम्मेलन या वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एण्ड एंटरटेनमेंट समिट (वेव्स) का उद्घाटन किया। सम्मेलन में भारत को रचनात्मक अर्थव्यवस्था बनाने के बारे में प्रभावशाली लोगों ने विचार साझा किए।

रचनात्मक अर्थव्यवस्था से तात्पर्य –

इसकी अवधारणा 2001 में जॉन हॉकिन्स ने दी थी। इसमें एक ऐसी प्रणाली की बात की गई, जिसमें भूमि, श्रम और पूंजी जैसे परंपरागत कारकों की जगह नवीन कल्पनाशील गुणों को आधार बनाया जाता है।

इस क्षेत्र में भारत पहले से ही समृद्ध है। यहाँ की कहानी कहने की समृद्ध विरासत, उपभोक्ताओं और रचनाकारों का विशाल समूह तथा तकनीकी क्षमता ही इसकी ताकत हैं।

चार प्रमुख तत्व, जो भारत को ‘ड्रीम फैक्ट्री’ बना सकते हैं –

  • रचने की स्वतंत्रता। संरक्षक या नियामकों के बिना ऐसी रचनात्मक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, जिस पर लोगों की भीड़ की स्वीकृति या अस्वीकृति का दबाव न बने।
  • एक ऐसी आलोचनात्मक संस्कृति बनाई जानी चाहिए, जो रची गई सामग्री की खुलकर समीक्षा, आलोचना और प्रशंसा कर सके।
  • वित्तीय संरक्षण। कला और रचना को जीवित रखने के लिए आर्थिक सहायता की जरूरत होती है। एक ऐसी संस्कृति; जहाँ कला और विज्ञान में निवेश बढ़ सके।
  • व्यक्ति को सबसे ऊपर रखना। व्यक्तिगत रचनाकार को ऊपर के तीन बिंदुओं से लैस करके, एक ऐसी अर्थव्यवस्था का इनक्यूबेटर और ब्रांड एंबेसडर बनाया जा सकता है, जहाँ रचनात्मकता फल-फूल सके।

द इकॉनॉमिक टाइम्स’ के संपादकीय पर आधारित। 03 मई, 2025