प्रशासनिक चुनौतियां और सुधार

Afeias
19 Oct 2024
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परिचय –

भारत में कारोबारियों और नागरिकों के लिए भारतीय ब्यूरोक्रेसी के साथ काम करना या सामंजस्य बैठाना बहुत कठिन रहा है। भारत दुनिया की शीर्ष कंपनियों के लिए चीन का विकल्प बनना चाहता है। लेकिन चीन की प्रशासनिक सुधार की तुलना में भारत बहुत पीछे रहा है।

चुनौतियां –

  • भारत में सरकारी कर्मचारियों पर होने वाला व्यय जीडीपी का 4% है, जबकि एशिया के अधिकतर देशों में यह 1% – 2.5% के मध्य रहा है। हमारे यहाँ सरकारी कर्मचारियों की संख्या तथा दक्षता भी कम है।
  • सरकारी क्षेत्र में नीचे के स्तर पर वेतन अधिक तथा पद बढ़ने पर वेतन की वृद्धि कम होती है। जबकि निजी क्षेत्र में इसके विपरीत स्थिति है। इससे सरकारी कर्मचारियों पर विपरीत असर पड़ता है, तथा उनकी गुणवत्ता कमी आती है।
  • सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुरक्षा व वेतन-भत्ते उन्हें निश्चिन्त कर देते हैं। यद्यपि ये लोग सक्षम होते हैं, लेकिन विश्व में हो रहे बदलावों के साथ वे स्वयं की विशेषज्ञता में वृद्धि नहीं करते।

सुधार –

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के सुझावों को आवश्यक और व्यापक स्तर पर लागु करना चाहिए।
  • सिविल सेवा में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बदलाव करने चाहिए। क्लर्कों और प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या हमारे यहाँ ज्यादा हैं, जबकि तकनीकी विशेषज्ञों, शिक्षकों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या कम है। इसमें सुधार करना चाहिए।
  • सरकारी रोजगार की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। यह भारत में कुल रोजगार का 1% से थोड़ा अधिक लेकिन एशिया के औसतन 2% से कम है।
  • प्रशासन में पदोन्नति को परीक्षाओं के माध्यम से देना चाहिए।
  • अधिक पेशेवर और प्रदर्शन वाली सिविल सेवा तैयार करनी चाहिए।
  • प्रशासनिक अधिकारियों को कार्यकुशल व दक्ष बनाया जाना चाहिए। इसके लिए हमें जापान, द.कोरिया, सिंगापुर और ताईवान जैसे देशों से सीखना चाहिए।
  • नियामकीय संस्थानों की कमान सेवानिवृत्त कर्मचारियों की जगह तकनीकी विशेषज्ञों को दी जानी चाहिए। इनकी नियुक्ति भी प्रतियोगी परीक्षाओं से होनी चाहिए।
  • भारत में सार्वजनिक व्यय का बहुत बड़ा हिस्सा केंद्र व राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों के वेतनभत्तों तथा पेंशन में व्यय किया जाता है। जबकि स्थानीय निकायों को पर्याप्त धन नहीं मिलता। अगर यह धन इन्हें प्राप्त हो, तो शिक्षक, नर्स व कंपाउंडर की भर्ती हो सकेगी तथा स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन की निगरानी भी हो सकेगी।

विकसित भारत @2047 के लिए औपनिवेशिक काल की तरह काम करने की पद्धति को बदलने की जरूरत है।

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