पाठ्यक्रमों में हेर-फेर का विवादित मुद्दा
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हाल ही में एनसीईआरटी ने 12वीं के राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में संशोधन किए हैं। यह कई मायनों में चिंता का विषय है। मुद्दा यह है कि राजनीतिक दृष्टिकोण के बदलने पर ऐसे संशोधन किए जाते हैं। इसको लेकर उदारवादियों में भी राजनीतिक पूर्वाग्रह होता है। लेकिन शिक्षा के प्रति यह दक्षिणपंथियों से बेहतर होता है।
ऐसी राजनीति विश्व पर्यंत है – अमेरिका में क्रिटिकल रेस थ्योरी विवाद और ताइवान की इतिहास की पुस्तकों में चियांक काई रोक की विरासत पर बहस होती रही है। लेकिन भारतीय शैक्षिक पाठ्यक्रम में बदलाव सीमा पार कर रहे हैं। 2014 के बाद से संशोधन का यह चौथा दौर है।
पक्षपात पर पक्षपात –
यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में वामपंथी – उदारवादी पूर्वाग्रह रहा है। लेकिन इसका उत्तर इसे और भी बदतर दक्षिणपंथी पूर्वाग्रह से बदलना नहीं है, जैसा कि एनसीआरटी की पाठ्यपुस्तकों में हो रहा है।
उच्च लक्ष्य रखें – शिक्षा का लक्ष्य छात्रों को आधुनिक दुनिया के लिए तैयार करना होना चााहिए। उनको कई आख्यान प्रदान किए जाने चाहिए, और फिर अपना मन बनाने देना चाहिए। इस दिशा में, शिक्षा के प्रति एक उदार दृष्टिकोण, जो कई दृष्टिकोणों को मान्यता देता हो, अब तक का सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 जून, 2024