पंचायतों के राजस्व से जुड़े कुछ बिंदु
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हमारे देश की पंचायतें तीन स्तर पर काम करती हैं – ग्राम सभा, पंचायत समिति और जिला परिषद। ये कृषि, ग्रामीण आवास, जल प्रबंधन, बिजली स्वास्थ्य एवं सफाई के लिए उत्तरदायी होती हैं। कुछ मामलों में जिला परिषद स्कूल, अस्पताल, डिस्पेन्सरी और छोटी-मोटी सिंचाई योजनाओं का रख-रखाव भी देखती है। इन कार्यों के लिए पंचायतें राजस्व का प्रबंधन कैसे करती हैं ? कुछ बिंदु –
- पंचायत अपने राजस्व का कुल 1% करों के माध्यम से अर्जित करती है। उनका अधिकांश राजस्व केंद्र और राज्यों से अनुदान के रूप में आता है।
- 2022-23 की एक रिपोर्ट के अनुसार पंचायतों का 80% राजस्व केंद्र से व 15% राज्य सरकार से आया था।
- 2022-23 की ही रिपोर्ट में बताया गया कि पंचायतों को कुल 35,354 करोड़ रु. का राजस्व प्राप्त हुआ था। इसमें से मात्र 737 करोड़ रु. उनके अपने करों से जुटाए गए थे। यह धन भू-राजस्व, स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन फीस, संपत्ति कर, सेवाकर आदि से जुटाया गया था।
- गैर कर राजस्व से पंचायतों ने 1494 करोड़ रु. एकत्र किए थे। यह ब्याज-भुगतान और पंचायती राज कार्यक्रमों से एकत्र किए गए थे।
- अगर हम प्रत्येक पंचायत का औसत राजस्व देखें, तो हमें राज्यों के बीच बड़ा अंतर दिखाई देता है। केरल में जहाँ प्रत्येक पंचायत ने 60 लाख रु. का राजस्व एकत्रित किया, वहीं प.बंगाल ने 57 लाख रु., असम, बिहार, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और तमिलनाडु ने 30 लाख रु. तथा आंध्रप्रदेश, हरियाणा, मिजोरम, पंजाब और उत्तराखंड ने 6 लाख रु. से भी कम का राजस्व एकत्र किया था।
- अल्प राजस्व जुटाने की पंचायतों की क्षमता के कारण, संबंधित राज्य के स्वयं के राजस्व में पंचायतों की हिस्सेदारी बहुत ही कम थी। उदाहरण के लिए, आंध्रप्रदेश में पंचायतों की राजस्व प्राप्तियां 0.1% थी। उत्तर प्रदेश में यह 2.5% थी।
पंचायतों की इस गरीब स्थिति के साथ उन्हें राज्य और केंद्र से समय पर फंड नहीं मिल पाना एक बड़ी समस्या है। ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने कहा है कि वित्त वर्ष 2022-23 में 34 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 को ग्राम स्वराज की राष्ट्रीय योजना के तहत कोई फंड नहीं मिला। तेलंगाना में तो समय पर फंड न मिलने के कारण सरपंच निजी निधि का उपयोग करना पड़ा था। पिछले वर्ष चेन्नई में पंचायतों ने स्वतंत्रता की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था। सरकार को चाहिए कि पंचायतों की मूल समस्या का संज्ञान लेते हुए उन्हें आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में प्रोत्साहित करे।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 5 फरवरी, 2024