सेना और नौकरशाही को दलगत राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए

Afeias
17 Nov 2023
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हाल ही में केंद्र ने विकसित भारत संकल्प यात्रा रोड़ शो के लिए सभी विभागों से देश भर में अपनी उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए कहा है। यह यात्रा 20 नवंबर से 25 जनवरी, 2024 तक चलेगी।

इस सरकारी आदेश में भाजपा के पिछले दो कार्यकालों की केवल नौ वर्ष की उपलब्धियों का महिमा-मंडन करने को कहा गया है। इस यात्रा के लिए संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव पद के अधिकारियों को रथ-प्रभारी बनाया गया है। इतना ही नहीं, रक्षा मंत्रालय को भी इस प्रकार के निर्देशों के साथ युद्ध स्मारकों, रक्षा संग्रहालय, रेलवे और मेट्रो स्टेशन आदि सार्वजनिक स्थानों पर सेल्फी प्वाइंट बनाने को कहा गया है। विपक्षी दल ने नौकरशाही और सेना के इस राजनीतिकरण के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया है।

कुछ बिंदु –

  • भारत की शासन की संवैधानिक योजना कार्यपालिका, न्यायापालिका और विधायिका के बीच सत्ता के पृथक्करण की परिकल्पना करती है। साथ ही सेना और राजनीतिक कार्यपालिका के बीच भी अलगाव की एक रेखा है।
  • नौकरशाही और सेना दोनों ही पूरी तरह से राजनीतिक कार्यपालिका के नियंत्रण में हैं। लेकिन वे दलगत राजनीति से अछूते हैं। इसका जीवंत उदाहरण हमें देश में होने वाले निष्पक्ष चुनावों में मिलता है, जबकि इसकी पूरी बागडोर नौकरशाही के हाथ में होती है।
  • देश में किसी भी प्रकार की घरेलू राजनीति में सेना की भागीदारी को एक तरह से अभिशाप माना जाता है।
  • नौकरशाही और सेना के अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने व्यक्तिगत वैचारिक झुकाव की परवाह किए बिना नागरिकों द्वारा चुनी सरकार के प्रति वफादार रहें।

इन सबके साथ केंद्र का निर्देश उन्हें सत्तारूढ़ दल के हितों को आगे बढ़ाने में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मजबूर कर रहा है। संस्थानों को कमजोर करने से अपूर्णीय क्षति हो सकती है। अतः सत्तारूढ़ दल से उम्मीद की जाती है कि वह दलगत राजनीति में संस्थानों को न उलझाए, और राष्ट्र के हितों को सर्वोपरि रखे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 अक्टूबर, 2023