नागरिकों की भागीदारी से ही नगरों का विकास संभव है
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किसी भी नगर के विकास के मूल में उसके नागरिकों की भागीदारी होती है। लेकिन नागरिक कौन हैं ? क्या यह कोई मानकीकृत ईकाई है, जिसका कोई विशिष्ट व्यक्तित्व, प्राथमिकताएं या इतिहास नहीं है ? क्या ये नागरिक विकास प्रक्रिया में महज लाभार्थी हैं ? ऐसा नहीं है।
किसी भी स्थान के लिए एक योजना बनाने के लिए नियुक्त शहरी योजनाकार के विपरीत, उस क्षेत्र के नागरिकों की इसके विकास के परिणामों में प्रत्यक्ष हिस्सेदारी होती है। किसी नागरिक में आसपास के क्षेत्र के ज्ञान के निरंतर विकसित होने वाले निकाय की बराबरी किसी भी व्यक्ति या संगठन या समूह के ज्ञान से नहीं की जा सकती है।
योजना के सामान्य नियमों और स्थानीय ज्ञान के बीच एक मूलभूत अंतर है। संस्कृति और उपयोग के पैटर्न जैसी स्थानीय विशिष्टताओं की अवहेलना करते हुए सामान्य नियोजन नियम-निर्माण विनियमों, विकास नियमों आदि से जुड़े होते हैं। इनका सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन भी व्यावहारिक विफलताओं और सार्वजनिक भ्रम का कारण बनता है। पदयात्रियों और वाहनों के लिए सड़क बनाने वाला इंजीनियर ; स्ट्रीट-वेंडिंग, विंडो शॉपिंग, कुत्तों को घुमाने या दोस्तों से मिलने जैसी अनियोजित गतिविधियों के बारे में योजना नहीं बनाता है। इससे उस स्थान के उपयोगकर्ता पर काफी प्रभाव पड़ता है।
ऐसी ही स्थितियों में हमारा विषय नागरिक पर केंद्रित हो जाता है। कोई भी नागरिक स्थानीय ज्ञान और अनुभव का संरक्षक होने के कारण अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। नागरिक ही समुदाय का निर्माण करते हैं। ये समुदाय आसपास के लोगों को संगठित करके बनाए जाते हैं। इनके पास अनूठी संस्कृति, इतिहास और स्थानीय ज्ञान का भंडार होता है।
जो नगर इस अमूल्य सम्पति को प्राप्त करने में विफल रहते हैं, वे कौशल और अनुभव की एक विस्तृत श्रृंखला से चूक जाते हैं। इसके अभाव में स्वस्थ समुदाय, मजबूत अर्थव्यवस्था और स्थायित्व का निर्माण नहीं हो पाता है।
हम कितनी ही बार लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि हमारे नगर तभी स्मार्ट बनेंगे, जब हमारे नागरिक स्मार्ट बनेंगे। यह एक मिथक है। नागरिक अद्वितीय होते हैं। विविध होते हैं। अलग-अलग लिंग, आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के वाहक होते हैं। उनके पास नगर का ‘गुप्त नुस्खा’ होता है। अगर इनके बीच निरंतर संवाद की परंपरा को पोषित किया जाए, विविध घटकों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए तंत्र बनाया जाए, और स्थानीय रूप से प्रासंगिक समाधानों के लिए परीक्षण से सीखने के पैमाने को अपनाया जाए, तो नगर बेहतर विकास और अनुकूलन कर सकेंगे।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित कुणाल कुमार के लेख पर आधारित। 6 जून, 2022