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नदी-जोड़ के प्रतिकूल परिणामों की ओर सरकार की अनदेखी
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हाल ही में अपने एक लेख में हमने नदी जोड़ कार्यक्रम की जरूरत और उसके लाभों के बारे में बताया था। इस लेख में इस परियोजना में खतरों और पर्यावरणीय कानूनों के उल्लंघन पर चर्चा की जा रही है।
कुछ बिंदु –
- इस योजना की लागत 44,605 करोड़ रुपये है। इस योजना में कथित रूप से केन नदी बेसिन से अतिरिक्त पानी खींचकर बेतवा नदी बेसिन की ओर ले जाने की बात है।
- 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस परियोजना को मंजूरी दी थी। लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे चुनौती देने पर विचार किया था।
- ज्ञातव्य हो कि कानूनन पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में पनबिजली परियोजनाओं को अनुमति देने के लिए सख्त नियम है। इस योजना में दौरान बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर बनाया जाना है। बांध बनने से लाखों पेड़ कट जाएंगे, और पारिस्थितिकी तंत्र अस्थिर हो जाएगा।
- सरकार ने इस योजना पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई विशेषज्ञ समिति की टिप्पणियों को अनदेखा करते हुए उचित प्रक्रिया को दरकिनार किया है।
- सरकार ने घाटियों के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को जारी करने से भी इंकार कर दिया है।
- इस योजना के संबंध में सरकार का मुख्य दावा है कि केन और बेतवा बेसिन क्रमशः जल की अधिकता और कमी वाले हैं। लेकिन केन बेसिन में पानी की मांग बढ़ने पर क्या बेतवा के लिए उसका पानी मोड़ना ठीक होगा? ऐसे में दोनों नदी क्षेत्रों को नुकसान होगा।
- अंततः सरकार जितने ज्यादा संसाधन इसमें लगाएगी, प्रतिकूल घटनाओं के सामने वापस पलटने की संभावना उतनी ही कम होगी। इससे और हाल ही में शुरू की गई पार्वती कालीसिंध-चंबल लिंक सहित अन्य परियोजनाओं के प्रतिकूल परिणामों का प्रभाव आम जनता पर ही पड़ेगा।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 दिसंबर, 2024
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