मुक्त व्यापार की नीति अपनाए भारत
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आयात प्रतिस्थापन (इंपोर्ट सब्स्टीट्यूशन) और संरक्षण के संदर्भ में भारत के लिए व्यापार के खुलेपन को देश की विकास-नीति में सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक माना जाता है। अर्थशास्त्रियों की इस सिफारिश के पीछे पाँच स्रोत ऐसे हैं, जिनके माध्यम से मुक्त व्यापार, देश के विकास में योगदान दे सकता है।
- सर्वप्रथम, हमारे पास पारंपरिक व्यापार सिद्धांत है, जो तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत को लेकर चलता है। व्यापार को मुक्त करना किसी देश को उत्पादों में विशेषज्ञता की ओर ले जाता है। अन्य उत्पादों की तुलना में इसकी (विशेष उत्पाद की) उत्पादन लागत कम होती है। ऐसा लाभ कुशल विशेषज्ञता और विनिमय से आता है।
- दूसरे, हमारे पास न्यू ट्रेड थ्योरी है, जिसके लिए अर्थशास्त्री पॉल क्रुगमैन को 2008 में अर्थशास्त्र का नोबेल दिया गया था। जब उत्पादन गतिविधि पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के अधीन होती है, तो व्यापार में प्रत्येक देश को कुछ उत्पादों में विशेषज्ञता प्राप्त करने का अवसर मिलता है। ऐसा करने से उन उत्पादों की उत्पादन लागत का कम करने की भी अनुमति मिलती है। इसके बाद बढ़े हुए उत्पादन से वह उन देशों को आपूर्ति कर लाभ कमा सकता है, जिन्होंने उस उत्पाद का उत्पादन बंद कर दिया है।
- दुनिया भर में व्यापार ऐसा साधन है, जो अधिक उत्पादक प्रौद्योगिकी तक पहुंच के लिए माध्यम का काम करता है।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़कर किसी देश के उद्यमियों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलता है। इस तरह वे लगातार सक्रिय रहते हैं, और देश का विकास होता है।
- मुक्त व्यापार, दुनिया में सर्वश्रेष्ठ के खिलाफ अर्थव्यवस्था को बेंचमार्क करता है। यदि देश विश्व बाजारों में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ है, तो उसे समझना चाहिए कि इसकी घरेलू नीतियों, विनियमों और बुनियादी ढांचे में बदलाव की आवश्यकता है।
हाल की दो स्थितियों ने मुक्त व्यापार को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है –
- परिवहन और संचार प्रौद्योगिकियों में प्रगति के परिणामस्वरूप, लंबी दूरी पर माल और सूचनाओं को ले जाने की लागत कम हो गई है।
- तकनीकी विकास ने जटिल उत्पादों की बड़े पैमाने पर खपत को बढ़ा दिया है।
इन दो विकासों का अर्थ यह है कि उत्पादन गतिविधि को उत्पाद द्वारा नहीं बल्कि घटकों और गतिविधियों द्वारा विशेषज्ञता दी जा सकती है। नवाचार, डिजाइन व उत्पादन, कई घटकों की संयोजन लागत को लाभ के आधार पर विभिन्न स्थानों पर किया जा सकता है। चीन इस सिद्धांत को समझ चुका है। भारत को इसका लाभ लेने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पन्गढ़िया के लेख पर आधारित। 18 नवम्बर, 2021