लाभ वाले मुफ्त व्यापार समझौते करे भारत
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हाल ही में भारत ने यूके, कनाडा और आइसलैण्ड, नार्वे, स्विटजरलैंड व लिकटेंस्टीन जैसे चार यूरोपियन फ्रीटेªड एसोसिएशन या ईएफटीए देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए वार्ता की है। इससे जुड़ी लाभ-हानि को कुछ बिंदुओं में देखते हैं –
- इन वार्ताओं में धारणीयता, लचीलापन, श्रम, लिंग और डिजिटल व्यापार जैसे तत्व शामिल हैं। ये पेचीदा है। अमीर देश इन तत्वों पर अपने बेहतर प्रदर्शन का उपयोग करेंगे। जबकि भारत केवल डिजिटल ढांचे और उसकी पैठ के क्षेत्र में ही उनसे मेल खाता है। अतः भारत को अधिकांश तत्वों पर कोई लाभ नहीं होगा।
- इन समझौतों से हम बहुत मामूली लाभ की संभावना के लिए बहुत सारी ऊर्जा लगा रहे हैं। उदाहरण के लिए – यूके से भारत का द्विपक्षीय व्यापार, 2022-23 में 20.36 अरब डॉलर था। इसके अलावा यूके भारत के कुशल श्रम को लेकर भी सख्ती बरते हुए है। इसी प्रकार कनाडा के साथ 2022 का अंतरिम सौदा 8.2 अरब डॉलर के माल के लिए प्रस्तावित था। ईएफटीए से भी हमारा आयात अधिक और निर्यात कम का मामला है।
- अतः भारत को इन वार्ताओं के बजाय इंडो-पैसिफिक पर अधिक ध्यान देना चाहिए। यहाँ दो बहुपक्षीय व्यापार समझौते आरसीईपी या रिजनल एण्ड कांप्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप और काम्प्रिहेन्सिव प्रोग्रेसिव ट्रांस-पेसिफिक पार्टनरशिप या सीपीटीपीवी महत्वपूर्ण हैं। भारत आरसीईपी से दूर रहा है। सीपीटीपीपी साझेदारी में तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का छठा हिस्सा संलग्न है, और मूल रूप से चीन को बाहर रखने के लिए इसे डिजाइन किया गया है।
ऐसे व्यापार सौदों में शामिल होकर ही भारत खुद को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल कर सकता है। और चीन के खिलाफ एकजुट देशों द्वारा दिए अवसरों का लाभ उठा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 जुलाई, 2023
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