कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग
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हमारे जेलों में कैदियों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने एक पायलट कार्यक्रम शुरू करने का विचार रखा है।
कुछ बिंदु –
- उच्चतम न्यायालय के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि कम या औसत जोखिम वाले विचाराधीन कैदियों को इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग में घर पर रखा जा सकता है।
- यह ऐसा ट्रैकिंग डिवाइस है, जो कैदियों की गतिविधियों को ट्रैक और प्रतिबंधित करता है।
- मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 में एक प्रावधान है, जो कहता है कि ‘कैदियों को इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की उनकी इच्छा पर जेल से छुट्टी दी जा सकती है।’ किसी भी तरह के उल्लंघन पर उनकी यह सुविधा बंद की जा सकती है।
- ओडिशा पहला राज्य था, जिसने इस तकनीक के उपयोग का प्रस्ताव रखा था।
- हालांकि कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना, इस तकनीक को कब और कैसे उपयोग करने के बारे में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश या न्यूनतम मानक नहीं बताए गए हैं।
- हमारी जेलों में कैदियों की कुल क्षमता का 131.4 % दबाव है। ट्रैकिंग तकनीक के उपयोग से इस दबाव को कम किया जा सकता है।
- संसद की एक स्थायी समिति ने अभियुक्तों की सहमति से ऐसे उपकरणों के उपयोग को मंजूरी दी थी। बशर्तें यह लागत प्रभावी हों। समिति ने इसके माध्यम से कैदियों द्वारा अधिकारों के उल्लंघन न करने की संभावना, प्रशासनिक लागत कम होने, और जेलों में भीड़ कम होने जैसे लाभों का हवाला दिया था।
- दुनिया के कई देशों में ऐसे उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है।
- इन उपकरणों के साथ निजता के अधिकार के उल्लंघन की एक संभावना को देखते हुए हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में सशर्त जमानत से इनकार कर दिया था। इस मामले में अभियुक्त को अपना स्थान गूगल मैप्स पर पिन करके, जांच अधिकारी को साझा करना था।
बहरहाल, इन उपकरणों के लाभों की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 20 नवंबर, 2024
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