जनमत संग्रह कोई समाधान नहीं है
To Download Click Here.
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरूद्ध याचिकाओं पर सुनवाई संपन्न की है। इस पर की जाने वाली जनमत संग्रह की मांग को न्यायालय ने एक सिरे से खारिज कर दिया है। न्यायालय का यह भी कहना है कि संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थाओं के जरिए किया जाना चाहिए। जनमत संग्रह पर जानकारी योग्य कुछ बिंदु –
- भारत का संविधान निर्वाचित प्रतिनिधि और एक स्थायी कार्यकारिणी के माध्यम से जनप्रिय इच्छा को क्रियान्वित करता है। इसका वैकल्पिक मॉडल प्रत्यक्ष लोकतंत्र है, जहां जनमत संग्रह के माध्यम से मतदाता, विधायिका के निर्णय को निरस्त कर सकते है।
- स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र है। यहाँ किसी विधेयक का भविष्य जनमत संग्रह पर निर्भर करता है। लेकिन इसे मतदाता सशक्तिकरण के केवल सकारात्मक पक्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता है। स्विस संघ की स्थापना 1848 में की गई थी, जबकि महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1971 में मिला था। इसका कारण यही था कि जिन मतदाताओं के पास विधेयकों को पलटने की शक्ति थी, वे पुरूष मतदाता महिलाओं के वोट संबंधी अधिकार विधेयक को पलटते रहे।
- अमेरिका कभी-कभी स्थानीय स्तर पर जनमत संग्रह का उपयोग करता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नहीं।
- ब्रेक्सिट में जनमत संग्रह ने ही अपनी भूमिका निभाई थी। यह एक प्रकार से अनुत्पादक रही, क्योंकि सीमा-पार व्यापार एकीकरण को सुलझाना बहुत जटिल है। जनमत संग्रह से इसे सुलझाया नहीं जा सकता था। यही कारण है कि यूके आज एक कमजोर राष्ट्र बन गया है।
भारत ने जब सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की शुरूआत की थी, तो इसकी बहुत प्रशंसा की गई थी। जनमत संग्रह के हां/नहीं वाले प्रारूप को राजनीतिक अभिजात वर्ग, और नागरिकों के बीच बढ़ती खाई का प्रतिकार नहीं माना जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 अगस्त, 2023