गिद्धों को बचाने की कवायद
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प्रतिवर्ष सितंबर माह के पहले शनिवार को अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है। भारत में गिद्ध की कुल नौ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच गई हैं। उनके संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं।
कुछ बिंदु –
गिद्धों का महत्व –
- गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के सफाईकर्मी माने जाते हैं। ये सड़ते हुए शवों की कुशलता से सफाई करते हैं।
- ऐसा करके वे मानव जाति को कई संक्रामक बीमारियों से बचाते हैं।
- उनमें रेबीज और एंथ्रेक्स जैसे सबसे जहरीले रोगजनकों को पचाने की अनोखी क्षमता होती है।
- इनकी कमी से हमारी प्राकृतिक दुनिया खतरनाक रोगजनकों के लिए अतिसंवेदनशील हो जाती है।
विलुप्ति का कारण और संरक्षण –
- पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा ‘डायक्लोफेनेक’, जब मृत पशुओं के माध्यम से गिद्धों के अंदर गई, तो यह उनके गुर्दों को खराब करने लगी। वे मरने लगे।
- इसे देखते हुए ‘मेलोक्सीकैम’ नामक दवा का उपयोग शुरू हुआ, और हानिकारक दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और अनुसंधान केंद्रों की मदद से गिद्ध संरक्षण केंद्र बनाए गए हैं।
- समय-समय पर यहाँ के गिद्धों को, गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्रों में छोड़ा जाता है। इन क्षेत्रों में प्रतिबंधित दवाओं का उपयोग न किए जाने पर नजर रखी जाती है।
- संरक्षण केंद्रों में अब गिद्धों की संख्या 811 हो गई है।
- इनके संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता लाने हेतु भी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित भूपेंद्र यादव के लेख पर आधारित। 07 सितंबर, 2024
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