डिजीटल सामग्री के लिए नए दिशानिर्देश
Date:23-03-21 To Download Click Here.
हाल ही में सरकार ने ऑनलाइन सामग्री पर नए दिशानिर्देश नीति जारी की है। सरकार ने इस नीति में हमारे संवैधानिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करने की आवश्यकता के साथ, हिंसा और अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली अप्रिय सामग्री को बनाए रखने की मीडिया की चिंताओं के बीच एक संतुलन बनाने का प्रयास किया है।
नीति के मुख्य बिंदु –
- ऑनलाइन समाचार और प्रिंट मीडिया के बीच एक सामंजस्यपूर्ण नीति को अपनाने का प्रयत्न किया गया है।
- ऑनलाइन और टेलीविजन समाचार मीडिया के लिए भी यही नीति अपनाई गई है। इनको मालिक और निवेश की जानकारी देनी होगी।
- ऑनलाइन समाचार पोर्टल को आचार संहिता के दायरे में लाने की कोशिश की गई है। यही प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है। इनमें प्रेस काउंसिल एक्ट और केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) नियम, 1994 द्वारा तैयार किए पत्रकारिता के आचरण के मानदंड शामिल हैं।
- ओटीटी प्लेटफार्मों की कलात्मक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने स्व-नियमन का प्रस्ताव किया है, और कहा है कि ओटीटी संस्थाओं को एक साथ मिलकर एक आचार संहिता तैयार करनी चाहिए।
- शिकायत निवारण तंत्र को त्रिस्तरीय बनाया गया है। इसमे प्रकाशक, स्व-नियमन संस्थाएं और मंत्रालय से जुड़ी केंद्रीय समिति होगी।
ये दिशानिर्देश एक मौलिक और नैतिक प्रश्न उठाते हैं कि क्या ये संवैधानिक हैं ? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कई पैरोकारों के लिए ये दिशानिर्देश वास्तव में संविधान के अनुच्छेद 19 के सक्षम प्रावधानों को कमजोर करते हैं, और प्रतिबंध को सशक्त करते हैं। ऊपर से इन्हें देखने पर तो ऐसा प्रतीत होता है कि नागरिकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म के उपयोगकर्ताओ के लिए शिकायत निवारण तंत्र की उचित व्यवस्था की गई है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के विवरणों को देखते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक धोखा है।
घुमावदार नए नियम में कहा गया है कि एक उचित सरकारी एजेंसी द्वारा अदालत के आदेश या नोटिस पर बड़ी सोशल कंपनियों को अपनी गैरकानूनी या आपत्तिजनक सामग्री को एक निश्चित समय सीमा के भीतर हटाना होगा। इस नियम पर सरकार की ओर से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं है कि वह किस आधार पर यह निर्देश जारी करती है।
कानून के सेक्शन 69ए में प्रतिबंध नियम के तीन बिंदुओं पर नजर डाली जानी चाहिए –
1) नियम में अपील की प्रक्रिया का कोई प्रावधान नहीं है।
2) नियम 15 में नामित अधिकारी को ब्लॉकिंग आवेदन और उठाए गए कदम का रिकॉर्ड रखने के निर्देश है, जबकि नियम 16 में सभी आवेदनों और शिकायतों व उन पर की गई कार्रवाई की सभी डिटेल गुप्त रखने के निर्देशों का विरोधाभास है।
3) नए नियमों से प्रक्रिया को और अधिक अपारदर्शी व गुप्त बना दिया गया है।
समाधान क्या हो सकते हैं ?
- भारतीय डिजीटल और ओटीटी प्लेटफार्म को ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं से निपटने के लिए एकजुट होकर संहिता बना लेनी चाहिए।
- ब्रिटेन की सरकार भी ऑनलाइन कंपनियों के लिए जल्द ही एक कानून बनाने वाली है, जिसमें हानिकारक सामग्री के प्रसारण के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सकेगा, और इसे प्लेटफार्म से न हटाने पर दण्ड भी दिया जा सकेगा। ‘ऑनलाइन सेफ्टी बिल’ के नाम से प्रस्तावित कानून के माध्यम से इंटरनेट उपभोक्ताओं को सुरक्षा दी जा सकेगी, और हिंसा, आतंकी सामग्री, बाल यौन शोषण या साइबर बुलिंग आदि को प्रोत्साहित करने वाले मंचों को नियंत्रित किया जा सकेगा।
ऑनलाइन मंचों में अकांउट के वेरीफिकेशन तथा उनमें प्रवेश आदि को लेकर भिन्नता है। अतः इन कंपनियों से जुडे़ विवादों का निपटारा देश के कानूनों के अंदर ही किया जाना चाहिए। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री का मानना है कि इन कंपनियों को देश के कानून के अनुसार ही चलना होगा।
कुछ समय पहले ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करने की कोशिश की थी, और यहां तक दावा किया कि भारतीयों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना बहुत महत्वपूर्ण है। ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों में अंतर्निहित है, और यह ‘उचित प्रतिबंधों’ से घिरी हुई है। भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि जटिलताओ को देखते हुए ही हमारे संस्थापकों ने बड़ी सहजता और दूरदर्शिता के साथ अभिव्यक्ति की एक स्वछंद दृष्टि का परिचय दिया, ताकि संवैधानिक अधिकार आंतरिक शांति और सद्भाव को बढ़ावा दें।
हमारे सर्वोच्य न्यायालय ने कई मामलों में स्वतंत्रता और प्रतिबंधों को परिभाषित किया है, और उसके द्वारा निर्धारित कानून ही सर्वोपरि है।
सरकार ने ये दिशानिर्देश, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर तैयार किए हैं। कोर्ट के आदेश और सरकार के पूछे जाने पर सोशल मीडिया मंच को शरारती कंटेंट फैलाने वाले पहले इंसान की भी जानकारी देनी होगी। यूजर्स की गरिमा (खासकर महिलाएं) को लेकर शिकायतों के प्रति सरकार अधिक गंभीर है।
‘द हिन्दू’ एवं ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित लेखों पर आधारित।