चंद्रयान-3 की सफलता से संभावनाएं
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चंद्रयान-3 चांद पर खोजबीन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा तैयार किया गया तीसरा चंद्र मिशन है। इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर विक्रम और एक रोवर प्रज्ञान है, लेकिन ऑर्बिटर नहीं है। इसे 14 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया है।
चंद्रयान-2 चाँद की सतह पर इतनी तेजी से उतरा था कि यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसरो ने इससे जुड़ी साफ्टवेयर की समस्या की पहचान करके चंद्रयान-3 में सुधार किया है। चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग का यह मिशन भारत के लिए अति महत्वपूर्ण है। आइए, जानते हैं क्यों-
- चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग एक जटिल अभ्यास है, और इसमें विफलता की संभावना दुनिया भर में आम है। इससे जुड़ी प्रौद्योगिकीयों की सक्षमता दिखाने का भारत का यह दूसरा प्रयास है।
- भारत ने आर्टेमिस अकॉर्ड इसकी स्थापना अमेरिकी विदेश विभाग और नासा ने सात अन्य संस्थापक सदस्य देशों के साथ की है। 2020 में हुए इस समझौते का उद्देश्य मंगल, चंद्रमा, धूमकेतु और क्षुद्रग्रहों पर नागरिक अन्वेषण के लिए सामान्य सिद्धांत स्थापित करना है, ताकि की खोजों का उपयोग शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जा सकेद् से जुड़ने का निर्णय लिया है। अगर भारत को सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलती हैए तो इस समझौते के देशों में ऐसा कर पाने वाला भारत दूसरा देश होगा।
- चंद्रमा जैसा प्राकृतिक उपग्रह एक प्रमुख भू-राजनीतिक लक्ष्य के रूप में उभर रहा है। चीन और रूस एक ‘अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन’ पर काम कर रहे हैं। इस मिशन की सफलता को अमेरिकी नेतृत्व वाली धुरी की सफलता माना जाएगा।
- चंद्रयान की सफलताए इसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे निकट का सतही मिशन भी बनाएगा। यह हिस्सा भूवैज्ञानिक रूप से अद्वितीय पाया गया है। यहाँ स्थायी छाया मिलती है। इसका अध्ययन करने के लिए मिशन में छः वैज्ञानिक पेलोड तैयार किए गए हैं। अभी तक इस क्षेत्र में कोई मिशन सफल नहीं हो सका है। यहाँ जीवाश्म और हीलियम-3 मिलने की संभावना है।
कुल मिलाकर चंद्रयान-3 की सफलता से भारत को वैज्ञानिक और राजनीतिक परिवेश में चंद्रमा के बढ़ते महत्व का वैश्विक नेतृत्व करने का अवसर मिल सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 जुलाई, 2023