भारतीय कृषि की विफलता
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भारत ने अपने कृषि-बाजार को अमेरिकी अनाज, फल, डेयरी और मछली के लिए नहीं खोला है। इसका नुकसान अमेरिकी शुल्क में बढ़ोत्तरी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। फिर भी, सरकार का कदम एक तरह से उचित कहा जा सकता है।
कुछ बिंदु –
- हमारी जनसंख्या का 42% कृषि पर निर्भर है। इस क्षेत्र में 46% श्रमिक काम करते हैं।
- भारत की कृषि-संरचना उच्च उपज वाली फसलों को बढ़ावा नहीं देती है। जलवायु निर्भरता के कारण उत्पादन अस्थिर रहता है।
- छोटी जोतों और सिंचाई में अपर्याप्त सार्वजनिक निवेश के कारण खेती में अपर्याप्त पूँजी है।
- बीज विकास और उतपादकता वृद्धि को उर्वरकों जैसे सब्सिडी वाले कृषि इनपुट पर निर्भर रहना पड़ता है।
- भूमि के स्वामित्व के मुद्दे से कृषि ऋण और फसल बीमा जुड़े हुए हैं।
- कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से अभी भी कई फसलों की पैदावार काफी कम बनी हुई है।
- नतीजा यह है कि अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने खेती को पीछे छोड़ दिया है।
जल्द समाधान निकाला जाए –
अब समय आ गया है कि किसान कल्याण संरक्षणवाद से आगे बढ़े।
- सरकार को अब किसानों को निर्वाह खेती से मुक्त करना चाहिए।
- अमेरिका की केवल 2% आबादी कृषि में काम करती है।
- 1991 में चीन में 60% जनता खेती में लगी थी। वर्तमान में यह 22% रह गई है। लेकिन भारत में अभी 42% की कृषि पर निर्भरता है।
- जनसंख्या वृद्धि ने जोत को अव्यावहारिक आकार में विभाजित कर दिया है।
- अधिकांश प्रमुख फसलों से होने वाली आय की तुलना में इनपुट लागत और मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ी है।
भारत के आधुनिकीकरण के लिए जल्द ही इसका समाधान होना चाहिए।
विभिन्न समाचार प़त्रों पर आधारित। 9 अगस्त 2025