भारत को एक पारदर्शी कार्बन व्यापार नीति विकसित करनी चाहिए

Afeias
21 Nov 2024
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कुछ बिंदु

  • कार्बन व्यापार या ट्रेडिंग, बाजार आधारित एक ऐसा तंत्र है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकता है।
  • इसका मुल्य उद्देश्य विभिन्न उद्योगों या व्यवसायों को अपने कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में अनुच्छेद 6 नामक एक विशिष्ट खंड है। इसमें देशों के बीच होने वाले कार्बन व्यापार के बारे में रूपरेखा दी गई है।
  • कार्बन बाजार, विभिन्न देशों के उद्योगों को वायुमंडल से ग्रीन हाउस गैसों को कम करने या हटाने पर कार्बन क्रेडिट देता है। इस क्रेडिट से पार्टी को व्यापार में प्रोत्साहन मिल सकता है। साथ ही जलवायु कार्रवाई भी प्रोत्साहित होती है; जैसे- जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच करना।
  • भारत ने 2030 तक अपनी आधी बिजली गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से बनाने की स्वैच्छिक प्रतिबद्धता दिखाई है। इसके चलते यह कई कार्बन कटौती परियोजनाओं को देश में लाने का लाभ ले सकता है।
  • भारत में निजी क्षेत्र के कई उद्यम हैं, जो कथित तौर पर कार्बन को लॉक करते हैं। ये भी कार्बन क्रेडिट ले सकते हैं।
  • भारत के लोहा और इस्पात उद्योग उन नौ प्रकार के उद्योगों में से हैं, जो 2025 तक उत्सर्जन में कमी के मानकों को पूरा कर सकते हैं।
  • कार्बन की कमी की गणना करना एक कठिन काम है। इस हेतु भारत को अपने शोध संस्थानों और अधिकारियों के माध्यम से एक पारदर्शी और निष्पक्ष नीति विकसित करने का लक्ष्य रखना चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ के बराबर हो।

हालांकिए कार्बन बाजार में अभी कार्बन क्रेडिट को सत्यापित करने का भ्रम बना हुआ है। उम्मीद है कि वाकु में होने वाली कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) की 29वीं बैठक में इस समस्या का समाधान मिल सकेगा।

 ‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 अक्टूबर, 2024