बाल विवाह एक विरोधाभास है
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- हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने बाल विवाह निषेध अधिनिमय, 2006 के सख्त प्रवर्तन की मांग करने वाली एक याचिका पर विस्तृत फैसला सुनाया है।
- न्यायालय को ऐसा कदम इसलिए उठाना पड़ा है, क्योंकि यद्यपि समय के साथ देश में बाल विवाह में कमी आई है, लेकिन अभी भी चार में से एक लड़की की शादी सहमति की उम्र से पहले हो रही है।
- निर्णय के अनुसार बाल विवाह कानून (अ) बाल विवाह को प्रतिबंधित, रोकने तथा दंडित करने के लिए उपलब्ध विभिन्न तंत्रों की विस्तृत जानकारी देता है। (ब) ऐसे विवाहों को समाप्त करने के लिए दिशा निर्देश तैयार करता है।
- अगर कानून की निगरानी करने वाले अधिकारी कम योग्य हैं, और कानून का अनुपालन करवाने में अक्षम सिद्ध हो रहे हैं, तो दिशानिर्देश उनको ठीक करने के उपाय भी बताता है।
- निर्णय में बाल विवाह को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है। किंतु यह नहीं बताया गया है कि बाल विवाह कानून कैसे व्यक्तिगत कानूनों को दरकिनार करता है। अर्थात् यह कानून विवाह की वैधता पर कुछ नहीं कहता है।
- अतः चाहे सरकारें और न्यायालय बाल विवाह को गैरकानूनी मानते हों, लेकिन उन्हें अमान्य ठहराना उनके लिए मुश्किल है। इसे अमान्य घोषित करने के लिए दी गई प्रक्रिया सहज नहीं है। यही कारण है कि भारत में आज भी यह त्रासदी चलती जा रही है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 21 अक्टूबर, 2024
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