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अकेलेपन की बढ़ती बीमारी
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जापान और अमेरिका जैसे देशों में इस समस्या से निपटने के लिए व्यय भी किया जाता है। लेकिन भारत जैसे देशों के लिए ऐसा कर पाना कठिन लगता है। इसका कारण यहाँ की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का लचर होना है। एक अध्ययन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वासी स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में से 71% अपनी जेब से देते हैं। ऐसे देश में एकाकीपन जैसी नगण्य समस्या के लिए राशि आवंटित करने का प्रश्न कहाँ उठ सकता है ?
भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक बीमारियों का शिकार हैं। वर्चुअल दुनिया में जी रहे युवाओं को अकेलेपन की समस्या अधिक है। अकेले पन से जन्मे अवसाद, चिड़चिड़ेपन, क्रोध और आत्महत्या की ओर प्रवृत्त होने वाले मामले हमारे देश में भी लगभग उतने ही हैं, जितने पश्चिमी देशों में। लगभग 42% कर्मचारी मानसिक रूप से बीमार है। इसमें सामाजिक और आध्यात्मिक संस्थाएं बहुत मदद कर सकती हैं। लोगों के समूहों को जोड़कर उन्हें अपने बारे में सोचने और बोलने में मदद कर सकती हैं। अपने परिवार और वास्तविक दुनिया के दोस्तों से जुड़कर भी अपनी भावनाओं को संतुलित किया जा सकता है।
भारत की संस्कृति और समाज में सामूहिकता पर बहुत बल दिया जाता है। अगर ऐसे समाज में अकेलापन एक समस्या बन रहा है, तो नीतिगत चिकित्सकीय दृष्टि से उस पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 6 मई, 2023