
आउटसोर्सिंग और राज्यसभा से न बनाए जायें प्रधानमंत्री
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डॉ৹ मनमोहन सिंह एक बुद्धिजीवी व्यक्ति थे, जिन्होने भारतीय नीतिगत परिदृश्य पर अपनी व्यापक छाप छोड़ी। उन्होंने जो हासिल किया, वह अकल्पनीय था।
- डॉ৹ सिंह ने चाहे वित्त मंत्री के रूप में काम किया हो या प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने हमेशा सलाहकार की भूमिका ही निभायी। उन्होंने स्वीकृत नीतियों को नौकरशाही द्वारा लागू कराया।
- जिस समय वे प्रधानमंत्री थे, उस समय उनकी शक्तियाँ सोनिया गाँधी के हाथों में थी, और जब वित्त मंत्री थे, तब प्रधानमंत्री नरसिंहावा राव के हाथों में। इसके कारण उनके निर्णय प्रभावित होते थे।
- राजनीति में अकादमिक, टेक्नोक्रेट और निजी क्षेत्र के लोग ज्यादा ख्याति अर्जित नहीं कर पाते और डॉ৹ सिंह एक अकादमिक व्यक्ति थे। ये लोग जनता आवश्यकताओं को भली-भाँति नहीं समझ पाते। इसीलिए इनका आगे बढ़ना भी कठिन हो जाता है। लेकिन डॉ৹ सिंह प्रधानमंत्री के पद तक पहुँचे।
- एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्यसभा के सदस्य या आउटसोर्सिंग से प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहिए।
- नेताओं या प्रधानमंत्रियों की भी मजबूरियां होती हैं, जैसे अटल जी जसवंत सिंह को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे। लेकिन संघ परिवार के दबाव में वे ऐसा नहीं कर पाएं। हालांकि बाद में उन्होंने 2002 में उन्हें वित्त मंत्री बनाया। इसी तरह नेहरू जी को भी परंपरावादी वर्ग का सामना करना पड़ा था।
- महान प्रशासक, विशेषज्ञ, सैनिक, अकादमिक, उद्यमी सभी देश को बढ़ाने में अपने-अपने स्तर पर योगदान करते हैं। लेकिन इन्हें रणनीतिक अकांक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए। जनादेश प्राप्त व्यक्ति यदि इन्हें सत्ता सौपते हैं, तो वे अपने हित चाहते हैं। इसलिए उन निर्णयों का दामोदार भी उन्हीं जनादेश प्राप्त व्यक्तियों के पास होना चाहिए।
- जनादेश प्राप्त व्यक्ति के पास लोगों का विश्वास होता है। इसे दूसरे को पुरस्कार के रूप में नहीं दिया जा सकता। लोकतंत्र तोहफों वाली राजनीति नहीं है।
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