रोजगार की दिशा में तीन कदम
Date:21-11-17
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देश में बेरोजगारी की समस्या कोई नई नहीं है। परन्तु वर्तमान सरकार ने सत्ता में आने से पूर्व जिस प्रकार से रोजगार के अवसरों की भरमार लगाने का वायदा किया था, उससे उलट औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में काफी गिरावट देखने में आ रही है।देश के सभी क्षेत्रों में अपनी क्षमता से कम वेतन पर काम करने वाले कर्मचारियों को मिलाकर ‘अतिरिक्त कर्मचारियों’ की संख्या लगभग 5 करोड़ है। इसमें उन महिलाओं की गिनती नहीं की गई है, जिन्हें काम के बीच में से निकाल दिया जाता है।रोजगार क अवसरों में वृद्धि के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश, शिक्षा में निवेश, लघु एवं मझोले उद्यमों को बढ़ावा देने जैसे कई विकल्प सुझाए जाते रहे हैं। तीन विकल्प ऐसे हैं, जिन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
- वेतन सब्सिडी की नीति – वर्तमान में केन्द्र एवं राज्य स्तरों पर जितनी भी सब्सिडी दी जाती है। सभी पूंजी के रूप में दी जाती हैं-चाहे वह ब्याज पर हो या ऋण पर हो। हमारे सकल घरेलू उत्पाद में सब्सिडी का हिस्सा लगभग 5 प्रतिशत है। ये सब्सिडी पूंजी आधारित उत्पादन के तरीकों को बढ़ावा देती है। इसमें परिवर्तन करके इसे वेतन आधारित बनाया जा सकता है। यानी कोई भी उद्यमी जितनी अधिक नौकरियाँ देगा, उसे उतनी अधिक सब्सिडी मिलेगी।
झूठी नौकरियों को रोकने के लिए बायोमिट्रिक पहचान का सहारा लिया जा सकता है।
- कौशल विकास – कौशल विकास का वर्तमान कार्यक्रम अधिक गति नहीं पकड़ पाया है। कौशल विकास मंत्रालय ने भी 30 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने के अपने लक्ष्य को त्याग दिया है। जुलाई 2017 तक जिन 30 लाख लोगों ने किसी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण लिया है, उनमें से 10 प्रतिशत से भी कम को रोजगार प्राप्त हुआ है।
- इस क्षेत्र में हमें स्थानीय व्यवसायियों को जर्मन मॉडल की तरह काम करने को तैयार करना होगा। जर्मनी में विश्व का सफलतम व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया है। इस मॉडल में जर्मनी के व्यवसायी कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए काफी धन खर्च करते हैं। इससे उन्हें प्रशिक्षु के रूप में ही बहुत अच्छे कर्मचारी मिल जाते हैं। किसी भी स्थिति में रोजगार की गारंटी के बिना व्यावसायिक प्रशिक्षण देना व्यावहारिक नहीं है।
- तीसरा मार्ग कृषि क्षेत्र से संबंधित है। आज की युवा पीढ़ी अपने पारंपरिक कृषि व्यवसाय से बाहर निकलने को आतुर है। दरअसल, इस व्यवसाय को अधिक उत्पादक एवं अधिक आय वाला बनाने की आवश्यकता है। अनाज की फसल से अधिक लाभ फल, सब्जी एवं पशुपालन में है। ये उद्यम भी रोजगार के कई अवसर देते हैं। परन्तु इस क्षेत्र को अधिक उत्पादक एवं रोजगारोन्मुख बनाने के लिए कोल्ड स्टोरेज और रेफ्रीजरेटेड परिवहन की संख्या को बढ़ाना होगा।
बाजारों को भी व्यवस्थित करना होगा।
हमारे देश में कृषि बाजारों की व्यवस्था बहुत लचर रही है। खेत से सीधे दुकान पर उत्पाद की पहुँच बनाई जानी चाहिए। इससे मध्यस्थों से छुटकारा मिलेगा।
हमारे यहाँ के खेत बहुत छोटे-छोटे हैं। इन्हें मिलाकर बड़ी फार्मिंग कंपनी या अमूल की तर्ज पर को-आपरेटिव बनाए जा सकते हैं। इस माध्यम से विपणन एवं वितरण की सुविधा हो जाएगी। इसी तरीके से कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाया जा सकेगा।इन तरीकों पर अमल करके बेरोजगारी को विस्फोटक स्थिति तक पहुँचने से बचाया जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित प्रणव वर्धन के लेख पर आधारित।