मृदा ऑर्गनिक कार्बन का महत्व
Date:08-02-18 To Download Click Here.
शताब्दी के मध्य तक भारत की जनसंख्या और भी बढ़ जाएगी। हमें अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। इसके लिए हमें कम भूमि और मौसम परिवर्तन की कठोर स्थितियों के साथ अधिक अन्न उत्पन्न करने की आवश्यकता होगी। इन स्थितियों में भूमि की क्षमता को बढ़ाना ही एकमात्र उपाय दिखाई देता है। इसके विभिन्न वैज्ञानिक मृदा ऑर्गनिक कार्बन तकनीक को अपनाने की बात कहते हैं।
कार्बन के भंडार अधिकतर पृथ्वी की सतह, वायुमंडल एवं भूमि पर बने पारिस्थितिकी तंत्र में उपलब्ध हैं। पृथ्वी की मृदा में लगभग 2,344 गीगाटन आर्गनिक कार्बन मौजूद है। यह कार्बन पेड़-पौधों, पशुओं, जीवाणुओं, पत्तियों एवं लकड़ी से प्राप्त होता है। मृदा ऑर्गनिक कार्बन में तापमान, वर्षा, वनस्पतियों, मृदा-प्रबंधन एवं भूमि के उपयोग में परिवर्तन के अनुसार बदलाव आता है।
लाभ
- मिट्टी में ऑर्गनिक कार्बन की मात्रा को बढ़ाने से मिट्टी के स्वास्थ्य, कृषि उत्पादन, ,खाद्य सुरक्षा, तथा जल की गुणवत्ता को बढ़ाया एवं रसायनों के प्रयोग को कम किया जा सकता है।
- इससे भमि के अपक्षरण को रोका जा सकेगा। सुरक्षा-फसलों, पोषण-प्रबंधन, खाद एवं गाद के प्रयोग, जल-संचयन एवं संरक्षण तथा, कृषि-वानिकी को बढ़ाया जा सकेगा।
- एक अनुमान के अनुसार, अवक्रमित मिट्टी के केवल एक टन कार्बन युक्त मिट्टी बढ़ा देने से प्रति हेक्टेयर फसल को कई किलोग्राम तक बढ़ाया जा सकता है।
- मिट्टी में उपस्थित कार्बन में जीवाश्मों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैस को प्रतिवर्ष 75 प्रतिशत तक अवशोषित करने की क्षमता होती है। बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर में यह बड़ी राहत की बात हो सकती है।
हरित क्रांति के बाद से भारत में कई दशकों तक पैदावार तेजी से बढ़ी परन्तु इसके साथ ही कीटनाशकों, उर्वरकों आदि के रूप में रसायनों का प्रयोग भी बेतहाशा बढ़ गया। भूमि की गुणवत्ता में कमी होती गई और इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में भी बहुत कमी आ गई। कृषि में औद्योगिक परिवर्तन के कारण तंत्र का नाश हुआ। अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं और कीटों की कमी हो गई ‘जल स्रोत दूषित हो गए‘ विषैलापन बढ़ गया एवं रसायनों के अत्यधिक इस्तेमाल से अनेक किसानों की मृत्यु हुई।
नीति क्या हो?
- भारत में किसी समय काफी समय तक प्राकृतिक कृषि, परमाकल्चर एवं ऑर्गनिक कृषि की जाती रही। इस प्रकार की कृषि तकनीकें सफल एवं धारणीय हैं।इससे मृदा स्वास्थ्य बढ़ने के साथ-साथ लाभ में भी जल्दी वृद्धि होती है। अतः इस प्रकार की धारणीय कृषि प्रणाली अपनाने वाले कृषकों के तरीकों को अनुसंधान एवं नीति का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
- भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में जलवायु की भिन्नता के कारण कृषि के लिए अलग चुनौतियां हैं। अतः राज्य स्तर पर नीति-निर्माताओं को जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों को व्यवहार में लाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए कृषकों के प्रयासों पर गौर करने की आवश्यकता है।
- कृषि पर बनी स्थायी संसदीय समिति ने 2016 की रिपोर्ट में खाद सब्सिडी पर विचार करके ऑर्गनिक खाद को बढ़ावा देने की बात कही है। इसी प्रकार सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना निकाली है। परन्तु प्राकृतिक कृषि एवं अन्य प्रावधानों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
इन सबके पीछे खाद के व्यापारी और कई कृषि वैज्ञानिक शामिल हैं, जो कृषि वानिकी एवं पारिस्थितिकी का कोई ज्ञान नहीं रखते। यही लोग मुख्य रूप से सॉयल आॅर्गनिक कार्बन जैसी तकनीकों के इस्तेमाल का विरोध करते हैं। अतः इन सबसे ऊपर उठकर कृषकों, जनता एवं जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचने की जरूरत है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सुजाता बिरावन के लेख पर आधारित।