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मणिपुर की समस्या
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पिछले डेढ़ महीने से मणिपुर में तनाव और आर्थिक नाकेबंदी चल रही है। गौरतलब है कि विश्व की अधिकांश पिछड़ी जाति या आदिवासी समुदाय के लोग पहाड़ी भूमि पर निवास करते हैं। जाहिर तौर पर समतल भू-भाग में निवास करने वालों की तुलना में इन पहाड़ी इलाकों की आबादी पिछड़ी रह जाती है। मणिपुर की समस्या का भी मुख्य कारण यही है।
- मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में नगा समुदाय और मैदानी भागों में मैतेयी समुदाय निवास करता है। मैतेयी समुदाय अधिक विकसित है, और राजनीतिक धरातल पर भी उसकी पकड़ अच्छी है। मणिपुर में इन दोनों समुदायों के लोगों के बीच तनाव का लंबा इतिहास रहा है।
- मणिपुर के पहाड़ी हिस्से में ज्यादातर नगा आबादी रहती है, जिसके प्रशासन के लिए स्वायत्त जिला परिषद् है। राज्य सरकार इस परिषद् की सहमति के बिना पहाड़ी क्षेत्र के लिए कोई कानून नहीं बना सकती है। घाटी में रहने वाली आबादी पहाड़ी आबादी की तुलना में अधिक है। नगा जनजाति ईसाई धर्म को मानती है, तो घाटी में रहने वाले अधिकांश लोग हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। पहाड़ों पर रहने वाली नगा और अन्य जनजातियों को लगता है कि सरकार उनकी जमीन पर कब्जा न कर ले या ऐसा कोई कानून न ले आए, जिससे उनकी स्वायत्तता या जीवन शैली पर संकट आ जाए। इसी आशंका के चलते उपजा अविश्वास कई बार हिंसा का रूप ले चुका है।
- ‘इनर लाइन परिमट‘ भी मणिपुर की एक अनय गंभीर समस्या है। यह वह प्रणाली है, जिसे राजाओं के शासनकाल के दौरान लागू किया जाता था। इसके तहत कोई बाहरी व्यक्ति राज्य में न तो स्थायी नागरिक बन सकता था और न ही यहां जमीन या कोई अन्य संपत्ति खरीद सकता था। लेकिन केंद्र ने इसे खत्म कर दिया है। मणिपुर में बाहरी लोगों की आबादी लगातार बढ़ रही है। इससे मैतेयी समुदाय को अपना वजूद खतरे में नजर आ रहा है। इसके चलते आईएलपी की मांग जोर पकड़ती जा रही है। केंद्र इसे लागू करने को तैयार नहीं है।
- मणिपुर में कांग्रेस की सरकार है, और वहां के मुख्यमंत्री ने आगामी दो माह में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए सात नए जिले बनाने की घोषणा कर दी है। नगा क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है और वहाँ नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल ऑफ नगालैंड ने कांग्रेस के खिलाफ वोट डालने का फरमान जारी कर दिया है। इसे देखते हुए ही मुख्यमंत्री ने नए जिलों के गठन की घोषणा की है। यूनाईटेड नगा काउंसिल और दूसरे नगा गुटों ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी की शुरूआत की और इसका विरोध कुकी और मैतेई समुदाय कर रहें है। मणिपुर राज्य सन् 1949 में भारत का हिस्सा बना था और 1972 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था।
एक लंबे अरसे से राज्य में नगा एवं मैतेयी समुदायों के बीच हिंसा का वातावरण होने के कारण यहां सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) लागू कर दिया गया। मणिपुर की ‘आयरन लेडी‘ कही जाने वाली इरोम शर्मिला अपने क्षेत्रवासियों को इसी कानून से निजात दिलाने के लिए एक दशक से संघर्षरत रही हैं।
यदि केंद्र और राज्य सरकारें वाकई मणिपुर का विकास चाहती हैं, तो उन्हें मिलकर काम करना होगा। अन्यथा यह छोटा-सा खूबसूरत राज्य आर्थिक रूप से बिल्कुल टूट जाएगा।
‘जनसत्ता में अमरनाथ सिंह के लेख पर आधारित।