भारत के नगरों के लिए चुनौतियां और समाधान
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हमारे नगरों के प्रशासन को अनेक संस्थाएं और अधिकारी संचालित करते हैं। इन सबके अलग-अलग विधान हैं। स्थानीय प्रशासन भी अलग-अलग कार्यों के हिसाब से उपभागों में बंटा हुआ है, जिन्हें हम वार्ड कहते हैं। बड़े-बड़े नगर भी अलग-अलग क्षेत्रों में बंटे हुए हैं। यहाँ तक कि इनको संचालित करने वाले विभागों के भी अपने ज़ोन हैं। इन सभी ज़ोन या क्षेत्रों की सीमाएं एक-सी नहीं हैं। हर विभाग ने अपनी अलग-अलग सीमाएं निर्धारित कर रखी हैं। भारत के नगरों के विकास और भविष्य में बनने वाली स्मार्ट सिटी की राह में यह बहुत बड़ा रोड़ा है। चूंकि कार्ययोजना का फलित होना साझेदारी पर निर्भर करता है, इसलिए जब तक हमारे नगरों की आंतरिक सीमाओं में एकरूपता नहीं आएगी, तब तक न तो इनके लिए बेहतर कार्ययोजना बनाई जा सकेगी और न ही प्रशासन में सुधार होगा।
अगर राजधानी दिल्ली का ही उदाहरण लें, तो हम देखते हैं कि यह 2012 तक तीन नगर निगामें में बंटी हुई थी, जिसे अब बढ़ा दिया गया है। इसके 2021 के मास्टर प्लान में दिल्ली को 15 प्लानिंग ज़ोन में बांट दिया गया है। केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि सभी महानगरों को इस प्रकार के कई ज़ोन में बांटा गया है। इस मामले में सिंगापुर का उदाहरण लिया जा सकता हे। वहाँ 2014 के मास्टर प्लान में मुख्य पाँच ज़ोन रखे गए हैं। इनको 55 छोटे क्षेत्रों में बांटा गया है। इन 55 छोटे क्षेत्रों को भी उपक्षेत्रों में बांटा गया है। इन सीमाओं को सभी विभागों की स्वीकृति है और वे सभी इसी के अंतर्गत काम करते हैं।
हमारे नगरों के समक्ष जलवायु परिवर्तन की एक अन्य चुनौती सामने खड़ी है। अगर हम इसके साथ तादात्म्य नहीं बैठा पाते हैं, तो स्मार्ट सिटी के नाम पर बनने वाली बड़ी-बड़ी योजनाओं और बड़े पैमाने पर लगाई जाने वाली पूंजी व्यर्थ ही जाएगी।
वर्तमान में गुजरात तथा असम में चल रही बाढ़ की स्थिति कोई नई नहीं है। आए दिन बादल फटने की घटनाएं सुनी जा सकती हैं। एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश की स्मार्ट सिटीज़ में, इस शताब्दी के मध्य तक तापमान 1-1.50 बढ़ जाएगा। बादल फटने की घटनाएं भी बढ़ेंगी। ये सभी स्थितियां हमारे स्मार्ट शहरों के लिए एक तरह की परीक्षा सिद्ध होंगी।
स्मार्ट सिटी की प्रस्तावना में बताया गया है कि ये शहर दूरसंचार तकनीक, ऊर्जा के सदुपयोग, परिवहन, पानी, स्वच्छता एवं ठोस अवशेष प्रबंधन जैसे मूलभूत विषयों पर अधिक काम करेंगे। इनके अलावा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता होगी।
- आने वाले खतरों से निपटने के लिए लगातार मूल्यांकन करना। जैसे ताप बढ़ने की अवस्था में रेल्वे का संचालन विद्युत आपूर्ति में आने वाली बाधाओं से निपटना आदि हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन को सह सकने वाले तकनीकी मानकों को ग्रहण करना। विभिन्न सेवाओं के लिए नगर स्तर पर खरीद की जाती है। इसे रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल कहा जाता है। यह खरीदी जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। जैसे ताप-प्रतिरोधी फुटपाथ सामग्री खरीदी जाए। साथ ही आईएसओ जैसे मानकों का ध्यान रखा जाए।
- नगर की बुनियादी सेवाओं में होने वाली परस्पर निर्भरता को भली प्रकार संभाला जाए। नगरोंं में एक ढांचे के बिगड़ने पर स्वतः ही दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। जैसे विद्युत आपूर्ति में रुकावट आने से परिवहन या स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति में अपने आप बाधा पड़ जाती है। ऐसे मामलों से निपटने पर ध्यान दिया जाए।
- नगर प्रशासन को जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए नए वित्तीय स्रोत ढूंढ़ने चाहिए। जलवायु के विशिष्ट खतरों से जुड़े जलवायु-परिवर्तन बॉन्ड निकाले जा सकते हैं।
इस प्रकार के साधनों को अपनाकर भारत की आगामी स्मार्ट सिटी परियोजना को सफल बनाया जा सकता है।
समाचार पत्रों पर आधारित