बैड बैंक (Bad Bank) की अवधारणा कितनी सार्थक?
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सरकार ने बैड बैंक स्थापित करने का विचार किया है। आखिर क्या है यह बैड बैंक? इसकी क्या आवश्यकता है? बैड बैंक के बिना क्या हमारे बैंकों के कामकाज में गतिरोध आ रहा है? और अगर आ रहा है, तो बैड बैंक उन्हें दूर करने में कैसे और कितने सक्षम हो पाएंगे? ऐसे कई सवाल हैं, जो बैड बैंक की कार्यप्रणाली को समझे और परखे बिना मस्तिष्क में घूमने स्वाभाविक हैं?
हमारे नीति-निर्धारकों को बैड बैंकों की स्थापना के बारे में एक बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि ये बैंक भारतीय बैंकिंग सैक्टर की क्षमता को पुनः प्राप्त करने का माध्यम बनेंगे। यही इन बैंकों का उद्देश्य होगा। भारतीय बैंकिंग जगत में ऐसे क्या कारक हैं, जिनसे उनकी क्षमता का हृास हो रहा है?
- भारतीय बैंकों में ऐसी बहुत सी स्ट्रैस्ड संपत्तियां ( Stressed assets) हैं, जो अलग-अलग बैंकों में फैली हुई हैं या यूं कहें कि अलग-अलग बैंक इन स्ट्रैस्ड संपत्तियों से जूझ रहे हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रबंधक या वरिष्ठ अधिकारियों का समय इन स्ट्रैस्ड संपत्तियों के प्रबंधन में बर्बाद हो रहा है। इस कारण वे बैंकों के सामान्य कामकाज, जैसे ऋण अदायगी या ऋण प्राप्तकर्ता की पर्याप्त जांच आदि में अपना समय नहीं दे पाते। यही कारण है कि सार्वजनिक बैंक ऋण देने में बहुत पीछे चल रहे हैं।
- स्ट्रैस्ड संपत्तियों के कारण सार्वजनिक बैंक बहुत से कानूनी एवं संस्थानीय नियमों में फंसे रहते हैं। यदि किसी स्ट्रेस्ड संपत्ति के मामले में केन्द्रीय सतर्कता आयोग कोई निर्णय लेना चाहे, तो बैंकों के सामने नियम आड़े आते हैं और वे उनमें उलझकर सीबीसी या सीबीआई को ग्राहक के विरोध में कोई कदम उठाने के लिए लिखित दावा करने की स्थिति में नहीं होते।
- स्ट्रैस्ड संपत्ति को जब्त किए बिना सार्वजनिक बैंकों के पास इतनी पूँजी नहीं होती कि वे नए ऋण दे सकें।
- स्ट्रैस्ड संपत्ति का मामला ऐसा है, जिसमें सार्वजनिक बैंक चक्रवात की तरह गोल-गोल घूम रहे हैं, और उससे निकल नहीं पा रहे हैं। बैड बैंक की स्थापना के पीछे इन बैंकों को इस चक्रवात से निकालने की ही अवधारणा निहित है।
- बैड बैक कैसा हो–
- सर्वप्रथम बैड बैंक की स्थापना निजी इक्विटी फंड की तरह करनी चाहिए, जिसमें सरकार की 50% से भी कम इक्विटी हो।
- इन बैंकों में अलग-अलग बैंकों और अन्य क्षेत्रों के ऐसे विशेषज्ञों को रखा जाएगा, जो अलग-अलग बैंकों की बैड संपत्ति ( Bad assets)का प्रबंधन और पुनर्गठन कर सकें। स्टैªस्ड या बैड संपत्ति का अर्थ उन संपत्तियों से है, जिन्हें बैंकों ने ऋण के रूप में अपने ग्राहकों को दिया था और अब उन्हें वापस प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इस संदर्भ में विजय माल्या का उदाहरण लिया जा सकता है।
- बैड बैंक को केन्द्रीय सतर्कता आयोग या सीबीआई जैसी बाहरी निगरानी के बजाय किसी आंतरिक सतर्कता टीम के अंतर्गत रखा जाए।
- अगर बैड बैंक में सरकारी इक्विटी स्टेक 50% से भी कम होता है, तो उसे अपने कर्मचारियों को पर्याप्त धनराशि देने में कोई संकोच या अवरोध नहीं होगा। गौर करने की बात है कि एक तरह से डूबी संपत्ति को पुनर्जीवित करना या प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं है। बैड बैंक के कर्मचारी अपनी क्षमता के अनुसार जितनी संपत्ति प्राप्त करने में सफल होते हैं, उन्हें उनके कार्य के अनुसार पर्याप्त पुरस्कार भी मिलना चाहिए।
- बैड बैंक के प्रस्तावित ढांचे के अनुरूप अगर सब कुछ चलता रहा, तो निजी निवेशक भी इन बैंकों की इक्विटी में निवेश करना चाहेंगे। ये निजी निवेशक इन बैंकों की स्ट्रैस्ड संपत्तियों के लिए स्वतंत्र बोली लगा सकेंगे। इन निवेशकों में से कुछ इक्विटी स्टेक के अनुरूप बोर्ड में शामिल हो सकेंगे। बोर्ड के ये विशेषज्ञ बैंक के प्रबंधन पर अधिक पैनी नजर रख सकेंगे।
- सरकार को ध्यान रखना होगा कि बैंक की स्ट्रैस्ड संपत्ति के धारक को बैड बैंक में निवेश की अनुमति न दी जाए।
- बैड बैंक की मदद से बाकी के बैंक अपना काम सामान्य रूप से कर सकेंगे और उन्नति कर सकेंगे।
‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में प्रकाशित कृष्णामूर्ति सुब्रह्मण्यम के लेख पर आधारित।
टीप– अमेरीका, आयरलैण्ड एवं स्वीडन में इस तरह के बैंक काम कर रहे हैं।