बुजुर्गों के बारे में भी सोचा जाए
Date:16-10-17
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वर्तमान में भारत युवाओं का देश होने के नाते प्रजातांत्रिक लाभ उठाने का पूरा अधिकार रखता है। परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम विश्व में बुजुर्गों की जनसंख्या में भी दूसरे नंबर पर है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत की 20 प्रतिशत जनसंख्या वृद्ध हो जाएगी, जो कि वर्तमान में 6 प्रतिशत है। इसके बावजूद हमारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में बुजुर्गों और उनसे जुड़े रोगों के प्रति बेरुखी दिखाई गई है।बढ़ती उम्र के साथ अनेक प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। साथ ही पुराने रोग हरे हो जाते हैं। फिलहाल हमारे देश में बुजुर्गों में गैर संक्रामक रोगों एवं किसी न किसी प्रकार की विकलांगता की समस्या सबसे ज्यादा है। हमारे देश में बुजुर्गों की समस्याओं को कुछ बिन्दुओं के माध्यम से एक सीमा तक समझा जा सकता है।
- राष्ट्रीय स्तर के एक सर्वेक्षण के अनुसार बुजुर्गों की 80 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इस कारण उन तक पर्याप्त सेवाएं नहीं पहुंच पाती हैं।
- हमारे 30 प्रतिशत के लगभग बुजुर्ग गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आते हैं।
- हमारी स्वास्थ्य प्रणाली बुजुर्गों में बढ़ती गैर संक्रामक बीमारी जैस अल्ज़ाइमर डिमेंसिया (इन रोगों में याददाश्त प्रभावित होती है) आदि से निपटने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रखती। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी इस प्रकार के रोगियों की देखभाल के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं।
ऐसे मामलों में स्वास्थ्य सेवाएं अपर्याप्त तो हैं ही, साथ ही अस्पताल में भर्ती होने का खर्च भी बहुत ज्यादा है।
इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे, 2015 के अनुसार 2005-12 में पुराने एवं असंक्रामक रोगों से पीडित बुजुर्गों की संख्या दुगुनी हो गई। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है।
- आधुनिक जीवनशैली में बुजुर्गों का बढ़ता अकेलापन एक बड़ी समस्या है। इसके कारण रोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। शोध से पता चलता है कि इसके कारण बुजुर्गों में भी नशे की आदत रहती है। इसके चलते उनकी प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है।
- ब्राजील, भारत एवं अन्य एशियाई देशों में बुजुर्ग मरीजों की इच्छा रहती है कि परिवार के लोग ही उनकी देखभाल करें। परन्तु ऐसा हमेशा संभव नहीं हो पाता। बदलती जीवनशैली के साथ या आर्थिक कठिनाइयों के कारण पति-पत्नी दोनों को ही नौकरी करनी पड़ती है। उन्हें न तो इतना समय मिलता है और न सुविधा कि वे बुर्जुग मां-बाप की देखभाल कर सकें। इस कारण वे अपने बुजुर्गों को ओल्ड-एज होम में छोड़ देते हैंं और समय-समय पर उनसे मिलने जाते रहते हैं। लेकिन ऐसे स्थानों पर बुजुर्ग अपने को असहाय व उपेक्षित महसूस करते हैं।
- एक राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 3 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते हैं। 9.3 प्रतिशत ऐसे हैं, जो पति या पत्नी के साथ-साथ एवं 35.6 प्रतिशत ऐसे हैं, जो बच्चों के साथ रहते हैं।
- विदेशों के उदाहरण लें, तो कई देशों में बुजुर्गों की स्थिति अच्छी नहीं है। चीन में तो छह में से एक व्यक्ति 60 से अधिक उम्र का है। वहाँ के तमाम बुजुर्ग ‘डिमेंसिया’ से पीडित हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बुजुर्गों में ‘अल्जाइमर’ की विकराल समस्या है। इसका इलाज लंबे समय तक चलता है। सभी देशों में इतनी सुविधा नहीं है कि वे मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में रख सकें। इसके समाधान के रूप में जापान ने ‘केयर होम’ का रास्ता निकाला है। प्रतिदिन वीडियो कांफ्रेंसिंग कें माध्यम से अस्पतालों के डॉक्टर या नर्स बुजुर्गों से दिन में दो-तीन बार उनका हालचाल और दवाई लेने के बारे में पूछते रहते हैं।
आज निजी क्षेत्र में बुजुर्गों के लिए कम से कम तीन लाख आवास की आवश्यकता है। साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं में भी नवाचार की आवश्यकता है। इन सबके बावजूद गरीबी से जूझ रहे बुजुर्ग तो अपने उद्धार के लिए सरकार की ओर ही आस लगाए बैठे रहते हैं। सरकार को चाहिए कि अपने संसाधनों की सृजनात्मकता से उनकी जरूरतों को पूरा करने का ध्यान रखे।
समाचार पत्रों पर आधारित।