प्रसन्नता का रहस्य

Afeias
27 Sep 2017
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Date:27-09-17

 

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क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में प्रसन्नता का संबंध देश से कैसे जोड़ा जा सकता है? या फिर कोई देश अपने नागरिकों की प्रसन्नता के लिए जिम्मेदार कैसे हो सकता है? क्योंकि सामान्य रूप से ‘प्रसन्नता’ का संबंध आंतरिक मनःस्थिति से जोड़कर देखा जाता है। यानी कि प्रसन्नता एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला है। भूटान की राष्ट्रीय सफलता का पैमाना उसके सकल घरेलू उत्पाद के स्थान पर सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता को माना गया है। यह सच भी है। ऐसा क्यों नहीं हो सकता? एक ऐसा राष्ट्र,जो अपने नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करता हो, योग्य प्रशासन, रोजगार, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ भ्रष्टाचार से मुक्त हो, वह निश्चित रूप से कल्याणकारी होगा।

सन् 2017 की एक विश्व रिपोर्ट के अनुसार स्कैन्डिनेविया के लोग सर्वाधिक प्रसन्न लोग माने गये हैं। अमेरिका का स्थान 14वां, चीन का 71वां है। 1990 के बाद से चीन की प्रति व्यक्ति आय पाँच गुना बढ़ गई है, परन्तु उसकी प्रसन्नता की दर वहीं रुकी हुई है। इसका कारण शायद उसके सामाजिक सुरक्षा तंत्र में कमी या बेरोजगारी हो सकती है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत का स्थान 122वां है। यह पाकिस्तान और नेपाल से भी पीछे है। ऐसा लगता है कि विश्व में प्रसन्नता को नापने वाली यह रिपोर्ट किसी देश की कल्याणकारी योजनाओं और उनकी सफलता पर आधारित होती है। इस हिसाब से इसका नाम ‘राष्ट्रीय कल्याण योजना रिपोर्ट’ होना चाहिए। प्रसन्नता आधारित न माना जाए, क्योंकि प्रसन्नता तो वाकई एक निजी अनुभव की बात है।

प्रसन्नता कोई वस्तु नहीं है। लेकिन आज इससे जुड़ा बाजार बहुत विस्तृत हो चुका है। बाजार में अनेक उत्पादों को इस नाम पर बेचा जाता है कि वे आपको प्रसन्नता देंगे। और कुछ नहीं, तो प्रसन्नता पाने के उपायों वाली पुस्तकों से हमारे बुक स्टोर अटे पड़े हैं। वास्तव में प्रसन्नता अपनी पसंद का काम करने में मिलती है। वह सौभाग्यशाली है, जिसे उसकी क्षमता एवं रुचि के अनुकूल काम मिला है। यहाँ जार्ज बर्नार्ड शॉ की एक उक्ति याद आती है। उन्होंने कहा था कि ‘जीवन अपने आप को खोजने का नाम नहीं वरन् स्वयं के निर्माण का नाम है।’

सवाल उठता है कि ऐसा करने के लिए व्यक्ति अपने काम और जीवन को एक उद्देश्य कैसे दे? मान लीजिए, आपको पता चले कि आपके जीवन के तीन माह ही शेष हैं। आपको पहले तो एक झटका लगेगा। इसके बाद आप सोचेंगे कि कौन से ऐसे काम हैं, जिन्हें जल्द से जल्द करके आपको मुक्त हो जाना चाहिए। यहाँ सबसे बड़ी बात यह है कि इन तीन महीनों को आप जिस प्रकार से जीते हैं, जीवन में भी आपको वैसे ही जीना चाहिए। इसी में वास्तविक प्रसन्नता है।

जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हमें पूरा जीवन जीविकोपार्जन के लिए प्रयत्न करते हुए बिताना सिखाया जाता है। हमें जीवन का निर्माण करना नहीं सिखाया जाता। हमें जीवन में अपने जुनून के लिए जीना नहीं सिखाया जाता। हमें अलग-अलग क्षेत्रों में स्वयं को सिद्ध करने का ज्ञान नहीं दिया जाता। भोजार्ट की तरह बहुत कम लोग होते हैं, जिन्होंने तीन वर्ष की अवस्था में ही संगीत को अपना लिया था।प्रसन्नता उसी काम में मिलती है, जिसे करने में आपको सुबह से शाम होने का पता ही न चले। आप अपने आपको भूल जाएं, दीन-दुनिया से परे हो जाएं। आध्यात्मिक भाषा में इसे ही ‘ध्यान’ कहा जाता है।प्रसन्नता का एक दृष्टिकोण कृष्ण की गीता में भी मिलता है। इसमें वे कहते हैं कि फल की आशा के बिना यानी निरपेक्ष भाव से किया गया कर्म ही सर्वोत्तम होता है। यह एक तरह से सच भी है, क्योंकि जब आप किसी काम को करने में डूब जाते हैं, तब आपका अहं एक किनारे हो जाता है। ऐसी स्थिति ही जीवन का निर्माण करती है। प्रसन्नता पाने का रहस्य भी यही है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित गुरचरण दास के लेख पर आधारित।