एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड

Afeias
07 Oct 2019
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Date:07-10-19

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इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने कई माध्यमों से ‘एक राष्ट्र’ की संकल्पना को मजबूती देने की घोषणा की थी। इसी कड़ी में ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की मुहिम चलाई गई है। इतने बड़े राष्ट्र में नागरिकों को विभिन्न कारणों से एक से दूसरे भाग में स्थानांतरित होना ही पड़ता है। फिलहाल खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली मंत्रालय ने योजना की शुरुआत गुजरात-महाराष्ट्र और तेलंगाना-आंध्रप्रदेश के बीच की है। जून 2020 तक इसे देशव्यापी बनाने का लक्ष्य है।

कारण से जुड़े कुछ तथ्य

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के अनुसार लगभग 9 करोड़ लोग प्रतिवर्ष अपने राज्य बदलते हैं।

राशन कार्ड की पोर्टेबिलिटी की शुरुआत सबसे पहले आंध्रप्रदेश ने की है। एक अध्ययन के अनुसार यहाँ 25 प्रतिशत राशन कार्डधारी लोग इस पोर्टेबिलिटी का उपयोग कर रहे हैं।

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ देश के लगभग 80 करोड़ लोग उठाते हैं। इससे प्रति व्यक्ति को प्रति माह 5 किलो अनाज मिलता है। इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति के लिए जरूरी कुल कैलोरी का 25 प्रतिशत भाग इस योजना से प्राप्त होता है।
  • 2017 में भूख से ऐसी मौतें हुई हैं, जिसमें स्थान परिवर्तन के कारण परिवार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अनाज मिलने में कठिनाई हुई। योजना से इस प्रकार की त्रासदी को रोका जा सकता है।

योजना के कार्यान्वयन से पहले विचार योग्य बिन्दु

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मूलभूत संरचना को ही बदलने की आवश्यकता है। राजस्थान के लगभग 6.5 प्रतिशत लाभार्थियों को राशन देने से ही मना कर दिया गया, क्योंकि राशन दुकान में अनाज का भण्डार ही खत्म हो गया था। पोर्टेबिलिटी और बायोमेट्रिक्स से इस प्रकार की समस्याओं को न जांचा जा सकता है, और न ही इनका समाधान ढूंढ़ा जा सकता है।

आंध्र प्रदेश में योजना इसलिए सफल हुई, क्योंकि वहाँ राशन दुकानों की जवाबदेही तय की गई थी। राज्य सरकार ने मोबाईल आधारित तंत्र पर वास्तविक स्थिति का संज्ञान लिया था।

केन्द्र सरकार भी इस प्रकार का प्रयास कर सकती है। साथ ही वह दबे और शोषित-कमजोर वर्गों को योजना से मिले लाभ की पुष्टि कर सकती है।

  • पोर्टेबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली की संचालानात्मक पद्धति को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। सभी राज्यों को एक से तकनीकी मानदण्डों पर आधारित एक राष्ट्रीय मंच पर लाने की जरूरत है, जिससे पोर्टेबिलिटी राज्यों में चलती रहे।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आधार को जोड़ने के बाद निजता को बचाए रखना सरकार का दायित्व है। बायोमेट्रिक सिस्टम में आने वाले प्रमाणीकरण की विफलता से निपटने के लिए भी सरकार को तैयारी रखनी होगी।

सरकार को चाहिए कि वह राज्यों में ही पोर्टेबिलिटी को पहले शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करे। धीरे-धीरे इसका विस्तार किया जाना चाहिए। देश में भूख से मौत के मुँह में जाने वाले हजारों जीवन को इस माध्यम से बचाया जा सकता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित शुभाशीष भद्र और वरद पांडेय के लेख पर आधारित। 26 सितम्बर, 2019