
बुनियादी ढांचे का विकास
Date:26-09-17
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हाल ही में मॉर्गन स्टेन्ले, एचडीएफसी एवं आईसीआईसीआई ने भारत में बुनियादी ढांचों के निर्माण में निवेश करने का निर्णय लिया है। देश की प्रगति के लिए यह अत्यंत आवश्यक भी है।असल बात यह है कि हमारे देश में बुनियादी ढांचों में निवेश में सबसे बड़ी बाधा पूंंजी नहीं है, क्योंकि अभी तो राष्ट्रीय निवेश एवं बुनियादी संरचना निधि का ही धन बाकी पड़ा है। इसके अन्य कुछ स्पष्ट कारण हैं।
- भारत में बुनियादी ढांचों का विकास रुक-रुककर हो रहा है। आज इस क्षेत्र में लिए गए बैंकों के लोन न चुका पाने की कारण ही बैंकिंग सेक्टर बुरी तरह से हिला हुआ है। हमारी राजनीति ऐसी है कि वोट बैंक के चक्कर में लोगों से बिजली बिल के पूर्ण भुगतान की मांग नहीं की जाती। इसलिए यह क्षेत्र भी लड़खडाया हुआ है।
- बुनियादी ढांचे जैसे सड़क, पावर प्लांट, हवाई अड्डे, नगरों आदि के निर्माण के लिए भूमि की आवश्यकता है और भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में ऐसी उपलब्धता कम है।
- बहुत से बुनियादी ढांचों से जुड़ी योजनाएं भू-अधिकार, पर्यावरण के नाश, मूल निवासियों के विस्थापन के विवाद, निजी ठेकेदारों के बीच में काम छोड़ने, मंत्रालयों की सुस्ती एवं घूसखोरी, राज्य एवं विभागीय उपक्रमों की अनुमति के कारण अधर में लटकी हुई हैं। समय-समय पर इनको लेकर तूफान भी मचता है।
- इन सबसे बाहर निकलने के लिए डूबे जा रहे धन में और अधिक राशि लगा देना कोई समझदारी नहीं है।
- राज्य एवं केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह डेवलपर की योजनाओं को जल्द स्वीकृति दें, लाल फीताशाही को हटाएं एवं इन योजनाओं में फंसे हितधारकों के लिए विवादों को सुलझाने का सशक्त तंत्र तैयार करें।
हाल के निवेश में भारत को तीन योजनाएं मिल रही हैं। यह ध्यान में रखने वाली बात है कि निवेशकों को अनिश्चितता में ढंकी योजनाएं नहीं, बल्कि स्पष्ट और तेज गति से चलने वाली योजनाएं पसंद आती हैं। भारत में बुनियादी ढांचे के विकास को धन से ज्यादा राजनीतिक दृढ़ता एवं संस्थागत सहयोग की आवश्यकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।