प्लाज्मा तकनीक और उसके विविध आयाम
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- प्लाज्मा क्या है ?
यह किसी पदार्थ की ठोस/द्रव और गैस के बाद की चैथी अवस्था है। इस अद्भुत अवस्था में आवेशित आयन गैसीय अवस्था में बंधे हुए होते हैं। चूंकि पूरा द्रव्यमान आवेशित होता है, इसलिए ये पदार्थ की किसी भी अन्य ज्ञात किस्म से अलग व्यवहार दर्शाते हैं।
- प्लाज्मा का प्राकृतिक रूप
प्लाज्मा की जिस सघन और तीव्र अवस्था को हम रोज देखते हैं, वह सूर्य है। वहाँ इलैक्ट्रॉनों से लैस गर्म गैसें एक अलग ही अवस्था में रहती हैं। प्लाज्मा की इस बड़ी गेंद से धरती पर सौर-ऊर्जा का संचार होता है। इस तरह से यह जीवनदायिनी शक्ति के रूप में काम करता है।
- प्लाज्मा तकनीक
गुजरात के गांधीनगर में इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च नामक संस्थान है। वहाँ ‘टोकासाक्स‘ नामक बड़ी मशीनों की मदद से लगभग 700 कर्मचारी अल्पकालिक छोटा सूर्य बनाने के काम में लगे हुए है। बड़ी चुंबकों और वृहद् विद्युत क्षेत्रों का इस्तेमाल करके वे ऐसी स्थितियां पैदा कर सकते हैं, जो सूर्य पर सेकंड के कुछ हिस्से के लिए पैदा होती हैं। इसका निर्माण सतत आधार पर भी किया जा सकता है। इससे संलयन बिजली पैदा करने की दिशा में भी कदम उठाया जा सकेगा। यह प्लाज्मा संस्थान भारत को फ्रांस में बन रहे इंटरनेशनल थेर्मोनुक्लेयर एक्सपेरीमेंटल रिएक्टर में साझेदारी करने में सहयोग कर रहा है। इसकी लागत 14 अरब डॉलर है, और जब यह परमाणु रिएक्टर पूरी तरह से सक्रिय हो जाएगा, तब संभवतः वर्ष 2050 तक ‘स्वच्छ संलयन‘ बिजली उपलब्ध करवा सकेगा। इस परियोजना में भारत के अलावा चीन, रूस, जापान, यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया और अमेरिका भी जुड़े हुए हैं।
- प्लाज्मा से संक्रमण का उपचार
वैज्ञानिक इस बात का परीक्षण कर रहे हैं कि कम तापमान वाले प्लाज्मा का उपयोग फंगल इंफैक्शन के उपचार में और गंदे दांत की सफाई के लिए कैसे किया जा सकता है। आर्गन गैस के उपयोग से ठंडे प्लाज्मा जेट विकसित किए जाते रहे हैं। यदि प्लाज्मा की इस धार को सीधे संक्रमित स्थान पर भेजा जाए, तो कुछ ही बार में संक्रमण ठीक हो जाएगा। इसके पहले चिकित्सकीय परीक्षण कोलकाता में किए जा रहे हैं।
- प्लाज्मा से कचरा निपटान
अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में जैवचिकित्सकीय कचरे का निपटान बड़ी समस्या है, क्योंकि इनमें बेहद संक्रामक कचरा भी हो सकता है। इसलिए इसे उच्च तापमान पर जलाया जाता है। संक्रामक पदार्थों के जलने से कैंसरजनक धुआं उठता है। इसलिए यह बहुत नुकसानदेह है। वैज्ञनिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि अगर उच्च तापमान वाले प्लाज्मा से कम ऑक्सीजन वाली स्थिति में कार्बनिक कचरे को नष्ट किया जाए, तो वह कचरा सीधे मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और जल जैसे अणुओं में परिवर्तित होगा, जो कि पर्यावरण के लिए कम हानिकारक है। इस प्रक्रिया को प्लाज्मा पायरोलेसिस कहते हैं। यह तुलनात्मक रूप से महंगी जरूर है, लेकिन धरती को स्वस्थ रखने में इससे मदद मिलती है। यही कारण है कि इसे ‘प्लाज्मा की मदद से स्वच्छ भारत अभियान‘ की संज्ञा दी जाती है।
समाचार पत्रों पर आधारित।