Polity की तैयारी कैसे करें
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सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन का दूसरा और तीसरा पेपर सबसे अधिक चुनौतियों से भरा होता है और इसमें भी सामान्य अध्ययन का सैकेण्ड पेपर, जिसका संबंध मुख्यतः संविधान से है। इसके प्रमाण के रूप में हम सन् 2015 की टॉपर टीना डाबी के इस पेपर के स्कोर को देख सकते हैं। टीना डाबी का ग्रेज्युएशन में पॉलिटिकल साइन्स था, और यही विषय उन्होने आप्शनल सब्जैक्ट के रूप में लिया। जैसा कि आप जानते हैं, पॉलिटी के इस पेपर का सीधा और सबसे अधिक संबंध राजनीति शास्त्र से है। ध्यान देने की बात यह है कि जहाँ उन्हें सामान्य अध्ययन के इस दूसरे पेपर में 250 में से केवल 84 अंक मिले, वहीं इसी के आप्शनल पेपर में उनका स्कोर 60 प्रतिशत के लगभग है। आप समझ सकते हैं कि जिस स्टूडेन्ट ने आप्शनल पेपर के रूप में राजनीति शास्त्र पढ़ा हो, वही सामान्य अध्ययन के पेपर में लगभग-लगभग 33 प्रतिशत के आसपास स्कोर कर रहा है। आखिर इसका कोई न कोई कारण तो होगा ही? यहाँ मैं आपकी शंका निवारण के लिए यह भी बता दूँ कि ऐसा नहीं था कि उस साल सभी स्टूडेन्टस् को इस पेपर में बहुत कम माक्र्स मिले थे। तीसरे स्थान पर आने वाले जसमीत सिंग सिंधू ने इसी पेपर में 100 अंक पाये।
इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसा नहीं है कि इसमें नम्बर मिलते ही नहीं हैं। भावार्थ यह निकलता है कि इसकी तैयारी कुछ अलग तरीके से करनी पड़ती है। साफ है कि यदि हमारे पास केवल किताबी ज्ञान होगा, तो पॉलिटी पर आधारित इस पेपर में अच्छा स्कोर कर पाना कठिन होगा। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मैं आपकी सुविधा के लिए यह लेख लिख रहा हूँ, इस उम्मीद से कि इससे आपको पॉलिटी की तैयारी करके अपेक्षाकृत अधिक नम्बर लाने में मदद मिलेगी।
चुनौतीपूर्ण क्यों?
इस पेपर के चुनौतीपूर्ण होने के कुछ बहुत स्पष्ट कारण हैं, जिन्हें जानना आपके लिए बहुत जरूरी है, ताकि आप खुद को उसका सामना करने के लिए तैयार कर सकें। पहली बात तो यह कि इस पेपर का पाठ्यक्रम निश्चित रूप से दूसरों की तुलना में बड़ा है। इसके पाँच भाग हैं-शासन व्यवस्था, संविधान, राजनीतिक प्रणाली, सामाजिक न्याय और अन्तरराष्ट्रीय संबंध। वैसे सच पूछिए तो पाँच भाग होना इतनी बड़ी चुनौती नहीं है, जितना यह कि इसके दो भागों को छोड़कर शेष तीन भागों का पाठ्यक्रम स्पष्ट नहीं है। ये तीन भाग हैं – शासन व्यवस्था, पॉलिटी और सामाजिक न्याय। इस प्रकार पाठ्यक्रम का स्पष्ट न होना इसकी दूसरी बड़ी चुनौती है। जब पाठ्यक्रम ही निश्चित नहीं है, तो निश्चित रूप से आपके सामने यह एक बड़ा संकट पैदा होता है कि आप किन-किन टॉपिक्स पर तैयारी करें। तीसरी बड़ी चुनौती यह है कि इसका जो पाठ्यक्रम है, उसे हम संविधान और प्रशासनिक व्यवस्था का व्यावहारिक पक्ष कह सकते हैं। मुश्किल यह है कि न तो आपके पास प्रशासन का व्यावहारिक ज्ञान है और न ही शासन प्रणाली का। सामामजिक न्याय को आप थोड़ा-बहुत जरूर जानते हैं। इसलिए मुश्किल यह होती है कि इस पर पूछे गए प्रश्नों के सटीक उत्तर कैसे लिखे जाएं।
चैथी चुनौती उत्तर लिखने के दौरान उस समय आती है, जब आपसे इन समस्याओं के समाधान के बारे आपके विचार पूछे जाते हैं। सोचकर देखें कि यदि आपके पास उन समस्याओं का व्यावहारिक ज्ञान नहीं है, तो आप समाधान के बारे में कैसे बता पायेंगे। पांचवी चुनौती सीधे-सीधे करेन्ट अफेयर से जुड़ी हुई है। खासकर पॉलिटी की पूरी की पूरी तैयारी केवल अखबारों और समाचारों से ही सम्भव होती है। और आप जानते हैं कि अखबार इस विषय से भरे होते हैं। पाठ्यक्रम स्पष्ट नहीं है। ऐसी स्थिति में आपके सामने यह धर्मसंकट खड़ा हो जाना स्वाभाविक है कि इनमें से आप किसे अपनी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण समझकर तैयारी करें।
छठी चुनौती के रूप में अन्तरराष्ट्रीय संबंध से पूछे गए प्रश्न आते हैं। लेकिन ये इतने सामान्य प्रवृत्ति के होते हैं कि यदि आप सम-सामयिक वैश्विक घटनाओं के प्रति सतर्क हैं, तो उत्तर दे पाना मुश्किल नहीं होगा। आपके लिए खुशी की बात यह है कि इस भाग का पाठ्यक्रम स्पष्ट है। इस पर पूछे जाने वाले प्रश्न जटिल नहीं होते। दो सौ शब्दों में उत्तर लिखने को भी आप अपने पक्ष की बात मान सकते हैं।
पढ़ने और सुनने में आपको ये चुनौतियां भले ही बड़ी सामान्य सी मालूम पड़ें, लेकिन व्यावहारिक रूप में ये सामान्य हैं नहीं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए फिलहाल मैं यहाँ जो तरकीब बताने जा रहा हूँ, वह मुख्यतः यह है कि आपको किताबों की दुनिया से निकलकर समाज की जीवन्त दुनिया में प्रवेश करना पड़ेगा। यहाँ समाज से संबंध राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था तथा सामाजिक न्याय से है। यदि आप समझ रहे होंगे कि इन विषयों पर ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़कर अधिक नम्बर ले आयेंगे, तो मुझे लगता है कि आप सही नहीं समझ रहे हैं। ऊपर मैंंने जिन टॉपर्स की बात की है, उनमें मुझे टीना डाबी के द्वारा कम स्कोर किये जाने का मुख्य कारण यही मालूम पड़ता है कि इस विषय पर उनकी पूरी तैयारी किताबों तक केन्द्रित रही। शायद वे इसके बारे में जरूरत से ज्यादा ही जानती थीं, सामान्य अध्ययन की दृष्टि से। उनकी मुश्किल यह हुई कि वे अपने विषय संबंधी इस विशेष ज्ञान को सामान्य ज्ञान में परिवर्तित नहीं कर सकीं। ऐसा क्यों हुआ, इसका कारण इन विषयों की व्यावहारिकता से उनका अपरिचित रहना था।
सामग्री
मित्रो, जहाँ तक पॉलिटी की तैयारी से संबंधित पढ़ने की सामग्री का सवाल है, मैं एक बात विशेष रूप से कहना चाहूँगा कि आप ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ने के चक्कर में न पड़ें। आपके लिए एन.सी.ई. आर.टी. की नौवीं से बारहवीं तक की किताबें तथा एम.लक्ष्मीकांत की किताब पर्याप्त होगी। हाँ, यह जरूर है कि आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि आप इन किताबों का कितना सही तरीके से इस्तेमाल कर पाते हैं।
इस पेपर की तैयारी को मैं स्पष्ट रूप से दो भागों में बाँटना चाहूँगा। इसका पहला भाग इसके सैद्धान्तिक पक्ष से जुड़ा हुआ है तथा दूसरा भाग इसके व्यावहारिक पक्ष से, जिसे इससे पहले मैंने ‘‘समाज से जीवन्त संबंध’’ कहा है। जब तक आप इन दोनों का बेहतर समन्वय नहीं करेंगे, तब तक आपकी तैयारी सम्पूर्ण रूप नहीं ले सकेगी। यहाँ मैं जिस तैयारी की बात कर रहा हूँ, उसमें प्री और मेन्स दोनों शामिल हैं।
आप जानते हैं कि प्री में लगभग बीस प्रतिशत प्रश्न पॉलिटी से पूछे जाते हैं और उन प्रश्नों का सीधा और ज्यादा संबंध संविधान से होता है। जाहिर है कि यह इस पेपर का सैद्धान्तिक पक्ष है, जिसकी उपेक्षा करना प्रारम्भिक परीक्षा में बहुत बड़ा खतरा मोल लेना होगा। मुझे मालूम है कि आप यह खतरा लेना नही चाहेंगे।
एक बात और है। जब तक आप किसी विषय के सैद्धान्तिक पक्ष से बहुत अधिक परिचित नहीं होंगे, तब तक आप उसके व्यावहारिक पक्ष को न तो अच्छी तरह समझ सकेंगे और न ही उस पर अच्छी तरह से अपने विचार रख सकेंगे। आप मेरे इस कथन को इस आधार पर टेस्ट करके देख सकते हैं कि राजनीति एक ऐसा विषय है, जिस पर पान ठेले के इर्द-गिर्द खड़े लोगों से लेकर संसद तक में बातें और बहस होती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इस विषय को आम लोग भी जानते हैं। लेकिन आम लोगों की सीमा यह है कि वे इसके सैद्धान्तिक पक्ष को नहीं जानते। यानी कि सैद्धान्तिक पक्ष को जाने बिना इस पर बात तो की जा सकती है, लेकिन अपनी बात को वजनदार नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि ऐसे में उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध होती है। इसलिए आपको इन दोनों ही पक्षों में सन्तुलन बनाकर चलना होगा।
जहाँ तक इसके व्यावहारिक पक्ष को जानने की बात है, निश्चित रूप से इसके लिए जो सबसे महत्वपूर्ण किताब हो सकती है वह है- न्यूज पेपर। आपको बहुत अधिक न्यूज पेपर्स नहीं पढ़ने हैं। आप राष्ट्रीय स्तर का एक न्यूज पेपर ले लीजिए, पर्याप्त होगा। यहाँ मैं आपकी सुविधा के लिए एक महत्वपूर्ण सूचना यह देना चाहूँगा कि यदि आप एएफईआएएस.कॉम की वेबसाइट पर चले जाएं, तो वहाँ आपको राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी-अंग्रेजी के दस सबसे महत्वपूर्ण अखबारों की सिविल सेवा परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्लीपिंग्स रोजाना इकट्ठी मिल जाएंगी। मुझे लगता है कि यह आपके लिए एक बहुत बड़ा खजाना है। आप अपने एक अखबार से समाचारों की जानकारी प्राप्त कर लेंगे। फिर इस वेब साइट से आपको ढेर सारे विषयों पर संपादकीय टिप्पणियाँ और संपादकीय लेख पढ़ने को मिल जायेंगे। इतना आपके लिए पर्याप्त होगा।
तैयारी का तरीका
आइये, अब थोड़े से उन व्यावहारिक कदमों की बात करते हैं, जिन्हें उठाकर आप इस अध्ययन सामग्री के साथ न्याय कर सकते हैं। मैं यहाँ अपनी इन बातों को बिन्दुवार रखना चाहूँगा, ताकि ये आपके दिमाग में अलग-अलग और स्पष्ट रूपों में मौजूद रहें।
- आपको अपनी तैयारी की शुरूआत एन.सी.ई.आर.टी की किताबों से करनी चाहिए। उनमें जितने भी अध्याय दिये गये हैं, उन्हें आप अच्छे से समझिये। आप यह मानकर चलें कि आपको मालूम नहीं है कि संविधान क्या होता है, सरकार क्या होती है, विधायिका किसे कहते हैं। समानता, स्वतंत्रता और न्याय की परिभाषाएं क्या हैं ? लोकतंत्र किस तरीके से काम करता है, आदि-आदि। इन किताबों में इन अध्यायों को बहुत विस्तार से और व्यावहारिक स्तर पर समझाया गया है और आपको पूरी गंभीरता के साथ इसे समझना है। यदि आप इसमें जरा भी ढिलाई देंगे, तो यह मानकर चलें कि यदि आपको संविधान पूरी तरह से याद हो भी गया है, फिर भी आप सिविल सेवा परीक्षा के उत्तर लिखने में अपने आपको कमजोर महसूस करेंगे।
- इसके बाद आप एम लक्ष्मीकांत की किताब पढ़ें और संविधान को बहुत अच्छे तरीके से समझें। इस किताब को पढ़ते समय एन.सी.ई.आर.टी. की किताब से जो कुछ भी आपने जाना है, उसे जोड़ते चलें। इसमें शुरू में आपको दिक्कत हो सकती है, लेकिन बाद में रास्ता आसान हो जाएगा।
- इस तैयारी के बाद जब आप अखबारों में पॉलिटी से संबंधित कोई भी संपादकीय टिप्पणी या लेख पढ़ते हैं, तो उसे न केवल संवैधानिक पृष्ठभूमि में ही देखें, बल्कि उसे समझने की कोशिश भी करें। यह जानें कि इसके लिए किस तरह के संवैधानिक प्रावधान हैं।
- रेडियो पर या दूरदर्शन समाचार पर इससे संबंधित जिन भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस होती हैं या साक्षात्कार लिये जाते हैं, उन्हें आप ध्यान से सुनें। वही आपकी सोचने और समझने की क्षमता को बढ़ायेंगे।
- महत्वपूर्ण घटनाओं पर अपनी ओर से विचार भी करें। जब आपकी तैयारी थोड़ी अच्छी हो जाए, तो बेहतर होगा कि आप उन पर थोड़ा-बहुत लिखना भी शुरू कर दें।
- परीक्षा में बैठने के लगभग एक-डेढ़ साल पहले से इस विषय पर तैयारी करने का आपका ढंग गंभीर हो जाना चाहिए। गंभीर इस मायने में कि अब आप परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण टॉपिक्स का चयन भी करते जाएं। ऐसा करने में अनसाल्ड पेपर की मदद लें। जो टॉपिक्स आपको महत्वपूर्ण मालूम पड़ते हैं, उन्हें अपने रजिस्टर के एक पृष्ठ पर नोट कर लें। फिर उस टॉपिक से संबंधित जब भी आपको महत्वपूर्ण तथ्य, घटनाएं, विचार, आकड़े, संवैधानिक प्रावधान आदि के बारे में पढ़ने को मिलें, उन्हें पृष्ठ पर नोट करते जाएं। इसके लिए कुछ स्थान छोड़कर रखें और इन टॉपिक्स को लगातार अद्यतन करते रहें।
मित्रो, निश्चित रूप से इस तरह की तैयारी में थोड़ा समय तो लगेगा। लेकिन इससे आपकी जो तैयारी होगी, वह बहुत ही ठोस होगी और बहुत ही नम्बर दिलाने वाली होगी। इस बात को कतई न भूलें कि इसका लाभ आपको साक्षात्कार में भी मिलेगा, क्योंकि साक्षात्कार में अक्सर राजनैतिक व्यवस्था पर प्रश्न पूछे जाते हैं, जो करेन्ट से संबंधित होते हैं।
आपकी आरम्भिक स्तर की तैयारी लगभग 6 महीने में हो सकती है। हाँ, फिर आपको अखबारों से उसे मजबूत बनाने के लिए थोड़ा वक्त जरूर देना होगा। इससें अन्ततः आपकी तैयारी बहुत अच्छी हो जाएगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.