कैसे पढ़ें-1
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इससे पहले कि मैं आपको बताऊँ कि कैसे पढ़ा जाना चाहिए, मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि पढ़ा जाना है, खासकर आई.ए.एस. की तैयारी के बारे में। इसे मैं पढऩे के तीन स्तरों के द्वारा बताना चाहूँगा। जब हम किसी भी पुस्तक को पढ़ते हैं, उसकी विषय-वस्तु को अपने दिमा$ग में लाना चाहते हैं, तो एक ही विषय में तीन तरह की परतेें मौजूद रहती हैं-
- सूचना का स्तर (Information) ,
- ज्ञान का स्तर (Knowledge) तथा
- प्रज्ञा का स्तर (Wisdom) ।
सूचना का स्तर (Information)
पढऩे का पहला स्तर सूचना का होता है, जो मुख्यत: सतही होता है। हमारी आरम्भिक पढ़ाई इसी स्तर की होती है। सच यह है कि हम किताबों से अपने लिए कुछ सूचनाएँ ही पाना चाहते हैं और उन्हें अपने दिमाग में रख लेना चाहते हैं। प्राथमिक कक्षा से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई इसी स्तर की होती है। यही हमारी वह कम$जोरी होती है, जो हमें आई.ए.एस. के लिए मॉडल बना देती है क्योंकि आई.ए.एस. की परीक्षा में केवल सूचनाओं से काम नहीं चलता।
सूचनाएँ क्या हैं? निश्चित रूप से वे छोटे-छोटे टुकड़े, जो हमें किताबों से मिलते हैं। $जरूरी है कि हम अपने दिमा$ग में उन्हें रखें, लेकिन अक्सर विद्यार्थी इन सूचनाओं को ही ज्ञान समझ बैठते हैं। कोचिंग क्लास या अपने स्टडी रूम से पढक़र बाहर निकले हुए विद्यार्थियों को मैंने बहुत गर्मागर्म बहस करते हुए सुना है। इस बहस के दौरान विद्यार्थी सूचनाओं के टुकड़ों की बमबारी करके सामने वाले पर अपना रौब जमाने की कोशिश में देखे गए हैं। सामने वाला भी उनकी इन सूचनाओं से आतंकित हो उठता है। लेकिन क्या आपको लगता है कि इन सूचनाओं के दम पर आप आई.ए.एस. पास कर लेंगे?
ज्ञान का स्तर (Knowledge)
यह सच है कि ज्ञान हवा से नहीं आता। यह सूचनाओं से ही प्राप्त होता है। लेकिन यह भी सच है कि सूचनाओं का संकलन ही ज्ञान नहीं होता और इसे आपको अपनी गाँठ में बाँध लेना चाहिए। यदि आप सचमुच आई.ए.एस. में सफल होना चाहते हैं, तो सूचनाएँ आपके लिए रॉ-मटेरियल का काम करती हैं। आपको इन सूचनाओं को ब्ववा करना पड़ता है। इन सूचनाओं को अपने दिमा$ग के रसोइघर में पकाकर ज्ञान में तब्दील करना पड़ता है। अन्यथा मात्र सूचनाएँ बिखरे हुए कंकाल की तरह ही अर्थहीन रह जाती हैं। चाहे प्रारम्भिक परीक्षा की समझदारी वाले प्रश्न हों या मुख्य परीक्षा के विश्लेषणात्मक जैसे प्रश्न, उनके उत्तर देना तभी सम्भव हो सकता है, जब आप विषय को ज्ञान के स्तर पर हल करेंगे। ज्ञान का यह स्तर तभी प्राप्त होता है जब आप विषय को रटते नहीं हैं बल्कि उसे समझते हैं। आप इसे यूँ भी कह सकते हैं कि सूचनाओं को रटा जाता है’ जबकि ज्ञान को समझा जाता है। ज्ञान सूचना से एक सतह गहरे में मौजूद रहता है।
प्रज्ञा का स्तर (Wisdom)
प्रज्ञा मौलिक होती है और अद्भुत भी। इसी स्तर पर पहुँचकर कोई भी वैज्ञानिक आविष्कारक बन जाता है और कोई भी लेखक फि लॉसफर। आइंस्टीन महान वैज्ञानिक थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि उन्होंने न्यूटन को पढ़ा ही नहीं होगा। कार्ल माक्र्स महान विचारक थे, लेकिन उन्होंने भी हीगल आदि के दर्शन को पढ़ा था। सूचना ज्ञान में परिवर्तित होती है और ज्ञान अंतत: प्रज्ञा में।
लेकिन इस स्तर के लिए आपको बहुत अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है। यह हमारे अध्ययन, मनन और चिन्तन का अंतिम पड़ाव होता है, जिसकी आई.ए.एस. में उतनी जरूरत नहीं होती। हाँ, यदि आप इसे हासिल कर सकते हैं, तो वह गलत बात नहीं होगी। बल्कि कुछ न कुछ बेहतर ही होगा, किन्तु फिलहाल मैं इसके लिए जद्दोजहद किए जाने की सिफारिश नहीं करूँगा। इसलिए यहाँ मैं इसके विस्तार में नहीं जाता।