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डिटेलिंग की ताकत-2

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डिटेलिंग के उपाय

इससे पहले कि मैं डिटेलिंग के उपायों के बारे में आपसे बात करूँ, मैं दो तथ्य एक बार फिर से दोहराना चाहूँगा। इनमें पहला तो यह कि थोड़ा-सा आगे जाने पर आप देखेंगे कि कहीं न कहीं डिटेलिंग और विश्लेषण, ये दोनों एक हो जाते हैं। पूरी तरह से तो एक नहीं होतेे, लेकिन काफी कुछ एक जैसे मालूम पड़ने लगते हैं। लेकिन दरअसल ये पूरी तरह से एक हैं नही। डिटेलिंग का अर्थ सामग्री जुटाना होता है, जबकि विश्लेषण का अर्थ होता है-उस इकट्ठी सामग्री से निष्कर्ष निकालना। इसलिए जब हम डिटेलिंग की बात करते हैं तो वह एक प्रकार से किसी टॉपिक विशेष पर एक विशेष कोण के साथ सामग्री जुटाने की बात हो जाती है।

निश्चित रूप से इस इकट्ठी की गई सामग्री का तब तक कोई अर्थ नहीं होता जब तक कि हम उसका उपयोग न करें। और इसका उपयोग करना ही विश्लेषण बन जाता है।

इसलिए यहाँ डिटेलिंग के उपकरण के बारे में जो भी बताया जाएगा, उनमें से बहुत से उपाय आप इससे पहले भी किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं पढ़ चुके होंगे। लेकिन यहाँ उन्हें एक साथ इकट्ठा दुहराने का मकसद केवल इतना है कि ये एक ही स्थान पर आपके दिमाग में बैठ जाएं ताकि आप उनका निश्चित उद्देश्य से इस्तेमाल कर सकें।

दूसरी बात यह कि डिटेलिंग के लिए आपको एक विस्तृत एवं गहरी दृष्टि की जरूरत पड़ती है। इसी बात को मैं इससे पहले ‘विस्तार’ और ‘गहराई’ के सन्दर्भ में कह चुका हूँ। गहराई के बारे में यहाँ मैं कुछ विशेष नहीं कहूँगा। लेकिन जहाँ तक विस्तृत-दृष्टि की बात है, इस बारे में इतना बताना जरूरी समझता हूँ कि यदि आपकी दृष्टि व्यापक नहीं होगी, तो आप वतमान में यह समझ ही नहीं पाएंगे कि जो घटना घटी है या जो सामग्री अभी आपके सामने है, वह भविष्य में आपके काम आएगी या नहीं। ज्यादातर विद्यार्थियों के साथ इस मायने में अक्सर चूक होती है। अभी वे उसकी उपेक्षा कर जाते हैं। बाद में जाकर उन्हंे पता लगता है कि वह घटना या सामग्री उनके काम की थी। चूँकि उसे फिर से जान पाना एक कठिन काम हो होता है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर वे उसे छोड़ देते हैं। ऐसा लगभग-लगभग सभी केे साथ होता है।

इसलिए सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे एक ऐसे स्टूडेन्ट के लिए, जो अपनी ही मौजूदा क्षमता को भेदकर अपनी रैंकिंग को सुधारने के बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है, दूरदृष्टि वाला बने। जब तक आपके मन और विचारों में खुलापन नहीं आएगा, तब तक आप डिटेलिंग के लिए वर्तमान में उपस्थित सामग्री की सही-सही पहचान नहीं कर पाएंगे। यदि आपने गलत पहचान करनी शुरू कर दी, तो कुछ समय के बाद आपके पास इतना कचरा इकट्ठा हो जाएगा कि वह बोझ लगने लगेगा। उस कचरे में कुछ काम की भी चीज होगी, तो उसे ढूँढना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा। इसलिए यहाँ एक विस्तृत एवं संतुलित दृष्टि की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।
अब मैं आपको कुछ उन तथ्यों से परिचित कराने जा रहा हूँ, उन उपायों के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो डिटेलिंग में आपकी मदद करेंगे।

  • निश्चित रूप से आपको पूरे विषय की डिटेलिंग नहीं करनी है। आपको डिटेलिंग उन थोड़े से टॉपिक की करनी है, जिसे आप अपने इस साल की परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। साथ ही उस एंगल से डिटेलिंग करनी है, जिस एंगल से उस टॉपिक के पूछे जाने की सबसे अधिक संभावना है।
    आपको अपने ऐसे टॉपिक्स की एक लिस्ट बना लेनी चाहिए, ताकि अखबार तथा पत्रिकाएं पढ़ते समय, न्यूज सुनते समय या इस तरह की किन्हीं अन्य स्थितियों से गुजरते समय आपका दिमाग तुरन्त इस बात की पहचान कर लें कि ‘हाँ, यह मेरे काम की है।’’ यह लिस्ट आपके सामने होनी चाहिए और इस तरह होनी चाहिए कि समय-समय पर आप इसे देखकर मन ही मन दुहरा सकें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे, तो निश्चित जानिए कि बहुत से महत्वपूर्ण तथ्य आपसे छूट जाएंगे।
  • जब भी आपको अपने लिए जरूरी तथ्य मिलें, आप उन्हें तुरन्त नोट कर लें,। टालें नहीं। इसके लिए मैं जरूरी समझता हूँ कि आपकी पॉकेट में एक छोटी-सी डायरी और आपके कमीज में एक पेन हमेशा होना ही चाहिए। किसी भी वजह से यदि आप इसे थोड़ी देर के लिए भी टाल देंगे, तो निश्चित जानिए कि वह हमेशा के लिए टल जाएगा। मैंने यहाँ तक महसूस किया है कि यदि आप बाद में उसे लिखने की कोशिश करेंगे, तो उसमें कुछ न कुछ विकार आ जाएगा। यानी कि आप उसे बहुत सटीक तरीके से नहीं लिख पाएंगे। कम से कम इस मामले में तो तात्कालिकता के इस सिद्धान्त को आप डिटेलिंग की मूलभूत फिलासफी ही बना लें।
  • जितने भी टॉपिक्स आपने चुने हैं, आपकी कापी में उनके लिए अलग-अलग पृष्ठ निर्धारित होने चाहिए। इसे आप एक अलग पद्धति से नोटस् बनाना कह सकते हैं। आमतौर पर तो विद्यार्थी विषय के नोटस् बनाते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि आपके ये ‘तथाकथित नोटस्’ बिल्कुल वैसे नहीं हैं। यहाँ आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वह विषय कोे जानने और समझने के लिए नहीं कर रहे हैं, बल्कि उस विषय की सूक्ष्मताओं को पकड़कर उसे मजबूत बनाने के लिए कर रहे हैं, ताकि आप दूसरों से कुछ अलग दिख सकें।

जब भी आपको कोई तथ्य मिले, उसे गड्डमगड्ड न करें। उसी दिन जब भी वक्त मिले, अन्यथा सोने से पहले तो निश्चित तौर पर, आप अपनी डायरी में नोट तथ्यों को अपनी कापी के उस टॉपिक वाले पन्ने पर उतार लें। यहाँ तक कि यदि आपको अखबार में या किसी पुस्तक में भी कुछ पढ़ने को मिलता है, तो आप उसे भी यहाँ ले आएं। आलस्य के कारण ऐसा न करें कि वहाँ अन्डरलाइन करके उसे छोड़ दें और यह समझ लें कि ‘‘मुझे मालूम हो गया है’’। ऐसा भी न करें कि आप उस हिस्से को काटकर कापी के इस पेज में रख दें। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि ऐसा करने से तथ्य आपके दिमाग में व्यवस्थित तरीके से नहीं बैठेंगे। वे तथ्य न केवल बिखरे ही रहेंगे बल्कि एक-दूसरे से उलझे भी रहंगेे। इसका नुकसान आपको तब उठाना पड़ेगा, जब आप परीक्षा हॉल में उत्तर लिख रहे होंगे। इसलिए यहाँ आपको अपनी इस जड़ता से उबरना ही होगा। मुझे इसका कोई विकल्प मालूम नहीं है।

  • अपनाा दिमाग, अपनी आँखें और अपने कान खुले रखें। देखें कि आपके चारों ओर क्या कुछ हो रहा है। मैं जीवन्त समाज की बात कर रहा हूँ। फिलहाल किताबों की बात नहीं। मान लीजिए कि आप गाँव में रह रहे हैं या गाँव में जाते हैं। वहाँ लोगों से बात करके जानने की कोशिश कीजिए कि उनको सरकारी योजनाओं का कितना लाभ मिल रहा है। उन्हें कौन-कौन सी दिक्कतें आ रही हैं। उन्हीं से पूछिए कि उन दिक्कतों का हल क्या हो सकता है। उनसे बातें कीजिए और उनकी अन्य जरूरतों को जानने की कोशिश कीजिए। विश्वास कीजिए कि आपको वहाँ जो बातें सुनने और जानने को मिलेंगी, वे महत्वपूर्ण होंगी। न केवल महत्वपूर्ण ही होंगी, बल्कि वे दूसरों से ऐसी अलग होंगी, जो आप पढ़ने में नहीं पा सकेंगेे। ये बहुत व्यावहारिक भी होंगी। मौलिक तो होंगी ही। और सबसे बड़ी बात यह कि आप इन तथ्यों को कभी भूल नहीं पाएंगे। आपको मालूम ही है कि सिविल सर्विस की परीक्षा में इस तरह के बहुत से व्यावहारिक प्रश्न पूछे जाते हैं।

यहाँ आपको केवल सरकारी योजनाओं के बारे में ही जानकारी नहीं मिलेगी बल्कि अपने देश की अन्य ढेर सारी बातों के बारे में भी आप जान सकेंगे। इनमें बदलते हुए गाँव का परिदृश्य, वर्तमान सामाजिक संरचना, लोक-जीवन पर पड़ने वाले दबाव आदि बहुत सी बातें शामिल हैं। आप गाँव को समझ सकेंगे। यदि आप ऐसा कर लेते हैं, तो अपने देश की लगभग सत्तर प्रतिशत समझ आपको हो जाती है। आपकी यह समझ आपको नगरीय और महानगरीय जीवन को समझने के लिए एक प्रति-विचार (काउन्टर थॉटस्) उपलब्ध कराएगी। क्या आपको यह एक छोटी उपलब्धि मालूम पड़ती है?

  • ऐसा केवल गाँव के बारे में ही नहीं बल्कि हरेक क्षेत्र के बारे में किया जा सकता है। सरकारी कार्यालयों में जाकर वहाँ आप प्रशासनिक स्थितियों और नौकरशाही के बारे में जान-समझ सकते हैं। लोगों से बातचीत करके आप देश के राजनीतिक परिदृश्य की समझ बढ़ा सकते हैं। जब आप किसी महिला से बात करेंगे, तब आपको पहली बार पता लगेगा कि पुरूष होने के नाते आप उनके और उनकी समस्याओं के बारे में जैसी सोच रख रहे थे, उनकी सोच उससे बिल्कुल भिन्न है। आप उनकी सोच से सहमत-असहमत हो सकते हैं। लेकिन याद रखिए कि डिटेलिंग के मामले में सवाल आपकी सहमति अथवा असहमति का नहीं होता। वहाँ सवाल होता है केवल उन रंग-बिरंगे बिन्दुओं को इकट्ठा करने का, जिनका उपयोग आप अपने चित्रों की डिटेलिंग करने के लिए करेंगे।
  • यहाँ मैं आपसे एक विशेष बात कहना चाहूँगा। वह यह कि आपको खासकर इस बात का ध्यान रखना है कि इसमें आप उन तथ्यों को न लें, जिन्हें आप इससे पहले नोटस् में ले चुके हैं। जब आप डिटेलिंग पर जाएंगे, तो आपके पास सीधे-सीधे दो तरह की सामग्री होगी। पहली सामग्री तो वह होगी, जो नोटस् के रूप में आपके पास पहले से ही चली आ रही है। दूसरी सामग्री डिटेलिंग की सामग्री होगी। यह विशेष किस्म की सामग्री है। आपको ध्यान यह देना होगा कि उसी सामग्री का दुहराव यहाँ न हो जाए। यदि ऐसा हुआ, तो आपकी यह सामग्री अपनी डिटेलिंग वाले चरित्र को खो देगी। इसका कारण यह है कि हमारा दिमाग सामान्य बातों को बहुत ही आसानी के साथ ग्रहण करता है। जबकि डिटेलिंग के लिए आपको विशेष सामग्री की जरूरत है इसलिए यहाँ जो कुछ भी हो, वह विशेष किस्म की हो, भले ही उनकी संख्या कम ही क्यों न हो, यहाँ तक की एक-दो ही सही।

आप ऐसा बिल्कुल न समझें कि डिटेलिंग के लिए आपको बहुत अधिक नए-नए तथ्यों की जरूरत होगी। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। सच पूछिए तो यदि आपके पास किसी भी उत्तर को लिखने के दौरान लिखने के लिए कोई विशेष सामग्री है, तो वही आपके उत्तर को चमका देगी। इसके महत्व को आप उसी तरह से आंक सकते हैं, जैसे कि गणित में शून्य का महत्व होता है। अपने-आपमें शून्य की कोई कीमत नहीं होती। लेकिन जब आप इसे किसी दूसरे आकड़ें के सामने रखते हैं, तो यह शून्य उसकी कीमत को दस गुना बढ़ा देती है। डिटेलिंग के लिए इकट्ठे किए गए तथ्यों के प्रति आपकी सोच और आपका व्यवहार ऐसा ही होना चाहिए।

  • आमतौर पर हमारे पढ़ने की पद्धति यही होती है कि जो भी हमारे पास उपलब्ध होता है, हम उसी से काम चला लेते हैं। इससे हमारी ज्यादातर जरूरतें पूरी भी हो जाती हैं। लेकिन डिटेलिंग के लिए आपको इससे थोड़ा आगे जाने की कोशिश करनी चाहिए। वह इस तरह से संभव हो सकता है कि यदि आपको अपने टॉपिक के लिए किसी विशेष सामग्री की जरूरत महसूस हो रही हो, तो आप उस जरूरत को पूरा करने के लिए अपनी ओर से प्रयास करें। यानी कि जो मिल गया है, उसी से काम न चलाएं। कुछ मामलों में जो चाहिए उसे ढूँढ़े भी। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि आप ‘संसद में गतिरोध’ विषय पर तैयारी कर रहे हैं। इसके एक साल पुराने आकड़े आपके पास हो सकते हैं। लेकिन उसके बाद भी संसद में यह गतिरोध जारी रहा। हो सकता है कि नए आकड़े अखबारों में आए न हों या फिर आए भी हों तो आपने उस पर ध्यान न दिया हो।यहाँ आपको चाहिए कि आप उन नए आकड़ों को लेकर आएं। इसके लिए बहुत से स्रोत हैं, उनका सहारा लें।
    • तथ्य इकट्ठे करने के जो स्रोत हैं, उनके बारे में आप जानते ही हैं। यहाँ उन्हें याद दिला देना गलत नहीं होगा। इन स्रोतों में हम शामिल कर सकते हैं-
    • उस विषय पर कोई नई रिपोर्ट।
    • कोई नई खोज।
    • कोई नया अध्ययन।
    • कोई नया आकड़ा, तथा
    • नए विचार।

इसके अतिरिक्त ऐसे बहुत से अन्य स्रोत होते हैं, जैसे कि अलग-अलग विषयों की पत्रिकाएँ, अलग-अलग विभाग एवं मंत्रालयों की वेबसाइटस् तथा इंटरनेट पर उपलब्ध ढ़ेर सारी सामग्री। मैं अक्सर इनका उल्लेख करने में डरता रहता हूँ। मैंने पाया है कि यदि विद्यार्थी को इनका उपयोग करने के बारे में कह दिया जाए, तो वे अपना अधिकांश समय इन्हीं में लगा देते हैं। जबकि इनका उपयोग एक रिफरेंस के रूप में ही किया जाना चाहिए। जब आपको डिटेलिंग के लिए किसी विषेष जानकारी की जरूरत है, तभी ऐसा करें। इनका प्रयोग बहुत ही विवेकपूर्ण तरीके से ही किया जाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि यह आपके लिए प्रतिगामी परिणाम देने वाला बन जाये

  • हम सबकी अपनी-अपनी विचारधाराएँ होती हैं। इन विचारधाराओं के आधार पर ही हम किसी भी मुद्दे पर अपनी राय कायम करते हैं। ऐसा करना गलत नहीं है। लेकिन आप अपनी राय के इतने अधिक गुलाम न हो जाएं कि दूसरे की मानने की बात तो दूर, सुनने को भी तैयार न हों। यह गलत है। यह गलत ही नहीं, बल्कि बहुत अधिक गलत है। इस बारे में मैं एक छोटी-सी मजेदार घटना बताना चाहूँगा।
    मैंने अपने डेली ऑडियो गाइडेन्स में एक दिन पहले अपने द्वारा किए गए एक प्रयोग की चर्चा करते हुए नौजवानों से अनुरोध किया कि वे बाइक या गाड़ी चलाते समय बेवजह हॉर्न न बजाएं। मैंने अपनी इस बात को बहुत विस्तार के साथ दस मिनट तक तार्किक रूप से समझाया कि हॉर्न बजाना कितना निरर्थक होता है। अगले दिन से मेरे पास ईमेल आने शुरू हो गए जिनमें अधिकांश नौजवानों ने मेरी बातों के प्रति अपनी सहमति व्यक्त करते हुए ऐसा करने का संकल्प लिया था। उसके बाद के ईमेल में उन्होंने खुश होकर अपने सकारात्मक अनुभवों को भी लिखा। लेकिन ऐसा नहीं था कि सारे मेल इसी तरह के थे। कुछ ने मेरे विचारों के प्रति असहमति भी जताई थी, जिनका मैं सम्मान करता हूँ। लेकिन उसमें जो मेल मुझे विशेष रूप से याद है वह कुछ इस प्रकार का था कि ‘‘आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं। हम लोगों को गलत काम करने के लिए भड़का रहे हैं। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। आपको नहीं मालूम कि मेरे साथ कितनी बार ऐसा हुआ है कि यदि मैंने हॉर्न का इस्तेमाल नहीं किया होता, तो मेरा बुरी तरह एक्सीडेन्ट हो गया होता। तब क्या आप मेरी भरपाई करते।’’ शब्द थोड़े-बहुत इधर-उधर हो सकते हैं, लेकिन भाव लगभग यही थे।

यदि आप इस प्रतिक्रिया को व्यक्त करने वाली मानसिकता को समझने की कोशिश करें, तो इस बात को पकड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी कि यह चेतना स्वयं को ही सही मानने वाली चेतना है। दूसरे के लिए इस चेतना के पास जरा भी स्पेस नहीं है। वह एक लोहे की तरह बिल्कुल ठोस और सपाट चेतना है, जहाँ दूसरों का प्रवेश निषिद्ध है।

मित्रों, मैं यहाँ सही या गलत होने की बात नहीं कह रहा हूँ। सत्य किसी के पास नहीं होता। आज आइंस्टीन के वे सिद्धान्त, जो उस समय धु्रव सत्य लग रहे थे, झूठलाए जाने लगे हैं। मैं यहाँ चेतना की गुणवत्ता की बात कर रहा हूँ कि वह चेतना दूसरों को स्थान देती है या नहीं। यदि वह नहीं दे रही है, तो साफ है कि उसके पास डिटेलिंग के लिए कुछ होगा ही नहीं। वह अपनी ही बात को घुमा-फिराकर कहता रहेगा और उसे लगता रहेगा कि उसने अपनी बात बहुत ठोस और अच्छे तरीके से कह दी है। केवल लाइन-लाइन से ही डिटेलिंग नहीं होती। उसके लिए आकृतियों के विभिन्न स्वरूप चाहिए। यहाँ विभिन्न विचार ही उस विभिन्न स्वरूप का काम करते हैं।

सच पूछिए तो आपको कोशिश यही करनी चाहिए कि आप विरोधी विचारों को अधिक तरजीह दें। आपके पास अपने विचार हैं। जैसे ही कोई आपके विचारों के विरोध में खड़ा होगा, आप देखेंगे कि स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए आपका दिमाग अपने आप ही उत्तेजित हो उठेगा। जैसे ही दिमाग उत्तेजित होगा, उसमें अपने आप ही तर्क आने लगेंगे। हो सकता है कि इसी में से कोई तर्क ऐसा हो, जो बिल्कुल नया हो और आपके लिए डिटेलिंग का काम करने लगे। बेहतर होगा कि मेरी बात को सीधे-सीधे मानने की बजाए आप इसे एक बार आजमायें। यदि परिणाम सही मिलते हैं, तो आगे जारी रखें अथवा इसे छोड़ने में एक सेकण्ड न लगाएं।

  • जैसा कि आप जानते हैं, परीक्षा हॉल में आपके पास इतना समय नहीं होता कि आप किसी प्रश्न के उत्तर के बारे में इत्मीनान से सोचें, उस पर अपनी राय कायम करें और फिर लिखें। वहाँ तो आप प्रश्न पढ़ते हैं और पढ़ते ही फटाक से लिखना शुरू करना पड़ता है। यदि आपके पास अपने उत्तर के लिए रीढ़ की हड्डी नहीं ह,ै तो यह मानकर चलिए कि आपके उत्तर का ढांचा गड़बड़ा जाएगा। आप उत्तर में कभी कुछ लिखेंगे, तो कभी कुछ। परीक्षक समझ ही नहीं पाएगा कि आखिर में आप कहना क्या चाहते हैं। विद्यार्थियों को लगता है कि यदि वह खूब पढ़ ले, तो उसकी यह समस्या खत्म हो जाएगी। जबकि इस समस्या की जड़ आपके पास विचारों के न होने में होती है। यदि आपके पास किसी भी विषय पर अपनी कोई राय है, तो आप देखेंगे कि तथ्य लगातार उस राय के अनुकूल अपने-आप कॉपी पर उतरते चले जाएंगे। इससे न केवल आपके उत्तरों का ही एक निश्चित दिशा मिलेगी, बल्कि आपके उत्तर की संरचना भी ठोस और सुन्दर होगी, मानो कि कोई परतदार चट्टान हो या फिर नीचे से ऊपर पहुँचाने वाली खूबसूरत सीढ़ियां।

इसलिए डिटेलिंग के लिए मुझे यह बात जरूरी लगती है कि महत्वपूर्ण टॉपिक्स पर आपको पहले से ही अपनी राय बना लेनी चाहिए। ऐसा करने पर दिमाग एक अन्य कारामात यह करता है कि लिखते-लिखते ही अपने-आप वह आपको कुछ ऐसी बातें दे जाएगा, जिसके बारे में आपने सोचा ही नहीं था और यही बात विशेष बात बन जाएगी और आपके उत्तर को दूसरों से भिन्न तथा बेहतर बना देगी।

मित्रो, इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य उपाय हो सकते हैं। फिलहाल जितने भी मेरे ध्यान में आए हैं, उनका उल्लेख मैंने किया है। लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूँ कि सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी की दृष्टि से ये उपाय अपने-आपमें पर्याप्त हैं। आप इनका जितना उपयोग करेंगे, इस कला में आप उतने ही अधिक पारंगत होते जाएंगे।

नोट:- डॉ. विजय अग्रवाल द्वारा यह लेख सबसे पहले ‘सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल’ पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। 

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