01-08-2023 (Important News Clippings)
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Date:01-08-23
Tango With Taipei
India should up its economic and diplomatic engagements with Taiwan, and not just because of chips
TOI Editorials
At the recent Semicon India 2023 conference, Foxconn chairman Young Liu not only reaffirmed his company’s commitment to India but also pitched Taiwan as a trusted partner. This was a significant statement, coming as it did days after the Taiwanese tech giant pulled out of a JV with Vedanta to manufacture semiconductors in India. Foxconn has said that it plans to apply separately to build semiconductor manufacturing plants in India. There have even been unconfirmed reports that Foxconn is looking to team up with Taiwanese semiconductor giant TSMC and Japan’s TMH for the India venture.
Should Foxconn’s plans materialise, it will be a huge boost to India’s quest of becoming a chip-making hub. There’s a bigger aspect in this: New Delhi should think big about Taipei. Taiwan is a high-tech economy that punches well above its weight – Taiwan alone produces over 60% of the world’s semiconductors. And although two-way trade between India and Taiwan hit a record $8.5 billion in 2022, it is far below potential. As tensions between China and Taiwan rise, Taiwanese businesses are looking to relocate to other markets. But here India has competition from other investmentfriendly destinations such as Vietnam, Thailand and the Philippines.
Note also that the majority of Taiwanese businesses are high-value MSMEs. And many of them move in packs. This means that enticing these businesses requires creating favourable conditions for entire industry supply chains. Plus, Taiwanese businesses in India have previously cited tax stability, contract enforcement and regulations as hurdles in doing business. Thus, if India wants Taiwanese businesses to do for its economy what they did for the Chinese economy earlier, it needs to have a more ambitious Taiwan policy. Taipei is willing, as highlighted by its New Southbound Policy to enhance engagements. But New Delhi still adheres to a cautious approach. To unleash the real potential of India-Taiwan economic ties, there has to be greater political consultations between the two sides. Sending an Indian parliamentary delegation to Taiwan is a good idea. This is what many Western democracies are doing despite their ‘One China’ stand. It’s time India too steps up and takes ties with Taiwan to a new level.
Stop the Crumble & Groan of Our Cities
ET Editorials
The Supreme Court’s observation that ‘city after city is getting into bad shape’ is spot on. From the sinking of Joshimath to the inundation of parts of New Delhi to flooding in cities and towns, it has been a story of urban unravelling. Fixing this situationwill require planning that balances growth, ecological integrity and access to services and opportunities as the cornerstone of India’s urban expansion. Without it, India is staring at a crisis that will unfold at huge cost to lives, assets and economy.
Of the nearly 8,000 recognised towns and cities, half are governed as rural entities. Less than a third have a masterplan, or are developing one. Urban centres are characterised by autonomous expansion, encroachments, filling of water bodies as well as illegal constructions. Even where masterplans do exist, the approach to urban planning is higgledy-piggledy. Rules and regulations such as building codes are observed mostly in their breach. The adhoc approach to urban planning, when it does exist, means that despite increased investments, towns and cities continue to face efficiencyand sustainability-related challenges, as was evident in the flooding of the Hindon river in the NCR owing largely to illegal constructions along with land grabs. Infrastructural shortcomings are not the only challenge. A far more serious problem is lack of governance frameworks and effective implementation of existing rules and regulations and compliance mechanisms.
Remedying the situation will require empowering and making local governments responsible for urban planning. Bringing in experts, particularly urban planners, into the exercise of designing and retrofitting a town/city as a system must build into it plans for growth that can be scaled up.
तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी के सारे पहलुओं पर गौर हो
संपादकीय
प्रधानमंत्री ने एक समारोह में सन् 2024 के आम चुनाव का बिगुल फूंकते हुए अपने नेतृत्व में अगली सरकार बनाने का लगभग ऐलान कर दिया। जीत का मंत्र होगा ‘भारत बनेगा दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी’। लेकिन इसका मतलब क्या है? क्या इकोनॉमी की साइज और जनता की खुशहाली का सानुपातिक रिश्ता है ? भारत आजादी के समय तो 20 अरब डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, लेकिन गरीबी भयानक थी । आज भी बेरोजगारी दर 7.45 फीसदी के आसपास है। फिर उस समय भी भारत की प्रति व्यक्ति आय वैश्विक औसत आय का मात्र 18 फीसदी थी। आज भी यह प्रतिशत (14 हजार डॉलर के मुकाबले 2600 डॉलर) उतना ही है। फिर मानव विकास सूचकांक में भारत पिछले 31 सालों में 130-135 के बीच झूल रहा है। यानी जीवन की गुणवत्ता में कोई परिवर्तन नहीं आया । बहरहाल असली विकास का पैमाना जीवन की गुणवत्ता बेहतर करना होता है, जो सही आर्थिक नीतियों से गरीबी के कारण खत्म करने से आता है। भारत में आर्थिक मॉडल दोषपूर्ण होने से गरीब-अमीर के बीच खाई बढ़ती जा रही है। चुनाव में सरकार और विपक्ष अपने-अपने आंकड़े देंगे। कोई जीडीपी का हवाला देगा तो कोई बेरोजगारी का रोना रोएगा। अपने-अपने तरीके से भावनात्मक मुद्दे जैसे धर्म, जाति, उपजाति, क्षेत्रवाद, भाषा आदि लाए जाएंगे। लेकिन जनता को चुनाव करने से पहले सोचना होगा कि उसका कल्याण किसमें है । मतदाताओं को यह देखना होगा कि तात्कालिक आर्थिक प्रलोभन से कहीं उनके और उनके बच्चे के भविष्य – शिक्षा व स्वास्थ्य पर किए जाने वाले व्यय में तो कटौती नहीं की जा रही।
भूमि को उपजाऊ बनाने की चुनौती
प्रोफेसर मान सिंह, ( लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में जल प्रौद्योगिकी केंद्र के परियोजना निदेशक रहे हैं )
इन दिनों बाढ़ और बारिश से देश का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न है। इसमें एक अंश खेती योग्य जमीन का भी है। अभी तो पानी की अधिकता है, लेकिन जब फसलों की सिंचाई का वक्त आता है तो पानी की कमी देखी जाती है और किसान नहरों में पानी आने का इंतजार करते हैं या फिर भूजल का दोहन करते हैं। भारत में बड़े पैमाने पर नहरों से सिंचाई पिछले सात-आठ दशकों से हो रही है। नहर-नालियों से होकर पानी जब खेतों में पहुंचता है तो अपने साथ कई तरह के लवण और विशेष रूप से सोडियम क्लोराइड यानी नमक भी कृषि भूमि पर ला छोड़ता है। भूजल में भी सोडियम क्लोराइड होता है। कहीं-कहीं तो कुछ ज्यादा ही, जो भूमि की उपजाऊ शक्ति घटाता है। नहरों के पानी या भूजल से आने वाले लवण मिट्टी की ऊपरी सतह में ही रह जाते हैं। इनकी मात्रा बढ़ती जाती है, क्योंकि उसे निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है। जिन खेतों पर दशकों से सिंचाई हो रही हो, वहां लवणता की समस्या विकराल रूप लेती जाती है और भूमि की उत्पादन क्षमता घटने के साथ वह ऊसर बन जाती है। इस तरह के उदाहरण विभिन्न राज्यों की कृषि भूमि पर प्रायः देखे जाते हैं। चूंकि तटीय क्षेत्रों पर समुद्री तूफान, चक्रवात आदि का प्रकोप प्रायः होता रहता है इसलिए वहां समुद्री पानी, जो अत्यंत खारा होता है, भूमि की उत्पादन क्षमता एक-दो दिन में ही समाप्त कर देता है। इसके लिए एकमात्र निदान उपसतही जलनिकासी प्रणाली यानी सब-सर्फेस ड्रेनेज सिस्टम है। यह एक तरह की तकनीक है, जिसमें कई तरह की नालियां होती हैं। इन नालियों के माध्यम से भूमि से लवण को बाहर किया जाता है। चार दशक पहले इस तकनीक के नेटवर्क को सिर्फ मजदूरों की मदद से स्थापित किया जाता था। आज उन्हें पूर्णतः मशीनों की मदद से तेज गति से स्थापित किया जाने लगा है। इस लवणीय भूजल का प्रयोग झींगा संवर्धन के उपयोग में लाया जा सकता है।
कृषि विज्ञानियों तथा इंजीनियरों द्वारा विकसित उपसतही जलनिकासी तकनीक लवणता से ग्रस्त भूमि अथवा खारी मिट्टी वाली अनुपजाऊ भूमि को दो-तीन वर्ष में ही उपजाऊ बना देती है। बीते दशकों में नीदरलैंड की मदद से हरियाणा और कनाडा की मदद से राजस्थान में इस तकनीक का प्रयोग कर दोनों राज्यों में 20 से 40 हजार हेक्टेयर लवणता ग्रस्त एवं जलभराव से प्रभावित भूमि को कृषि योग्य बनाया गया। कृषि विज्ञानियों के शोध में यह ज्ञात हुआ कि जिन लवणता ग्रस्त खेतों पर उत्पादकता 500 किग्रा प्रति हेक्टेयर होती थी, वहां पर उपसतही जलनिकासी तकनीक से कृषि उत्पादकता 2000-2500 किग्रा प्रति हेक्टेयर हो गई। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि भारत में लवणता और जल भराव से प्रभावित क्षेत्रफल करीब 80-90 लाख हेक्टेयर है और आने वाले समय में यदि सही कदम नहीं उठाए गए तो यह क्षेत्रफल और अधिक बढ़ सकता है। यदि कृषि योग्य भूमि सुधार हेतु इस तकनीक का उपयोग समय से न किया जा सका तो समस्या विकराल रूप ले सकती है। इससे खाद्यान्न उत्पादन घट सकता है।
भारत विश्व के 2.4 प्रतिशत भौगोलिक भूभाग एवं चार प्रतिशत जल संसाधन की मदद से अपनी अन्न संबंधी आवश्यकताएं पूरी कर रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भारत अब चीन से आगे निकलकर प्रथम स्थान पर आ गया है। बढ़ती जनसंख्या और घटती हुई उपजाऊ भूमि कृषक समुदाय की वर्तमान पीढ़ी एवं भावी पीढ़ी को भी चिंतित किए हुए है। कृषि व्यवसाय से जुड़े सभी लोगों में असुरक्षा की भावना न रहे, इसके लिए सब-सर्फेस ड्रेनेज सिस्टम अपनाना आवश्यक है। इस मामले में वर्तमान सरकार द्वारा सृजित सहकारिता मंत्रालय की भूमिका बहुत प्रासंगिक और उपयुक्त होगी। मृदा लवणता से प्रभावित राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब आदि में उपसतही जलनिकासी तकनीक के प्रयोग से लाखों हेक्टेयर अनुपजाऊ भूमि की मिट्टी के स्वास्थ्य को सतत उपजाऊ बनाए रखा जा सकता है।
वर्तमान सरकार कृषक समुदाय को आत्मनिर्भर करने के लिए प्रयत्नशील है। इसमें सफलता के लिए कृषि योग्य भूमि को उपजाऊ बनाए रखना आवश्यक है। भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए सिंचाई एवं जलनिकासी तंत्र की अवसंरचना को 2015 से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने बहुत सशक्त किया है, पर भूमि से लवण निकालने का अभ्यास बिल्कुल नहीं किया जा रहा है। स्पष्ट है कि भूमि सुधार को प्राथमिकता देना नितांत आवश्यक है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की सफलता को पूर्णता तब प्राप्त होगी, जब यह भी पता किया जाए कि किन-किन क्षेत्रों में मिट्टी की लवणता की समस्या गंभीर है। जहां कृषि उत्पादकता नगण्य हो गई हो, वहां कृषि भूमि को उपजाऊ बनाए रखने में एकमात्र उपाय उपसतही जलनिकासी तकनीक ही रह जाती है। इस तकनीक का इस्तेमाल नीदरलैंड, अमेरिका, कनाडा और पश्चिमी यूरोपीय देशों में किया जा रहा है। सहकारी व्यवस्था के तहत केंद्र एवं राज्य सरकारों के प्रयासों से भूमि को उपजाऊ बनाने का काम आरंभ करना बहुत सुगम होगा। कृषि भूमि को उपजाऊ बनाने की इस परियोजना में औसतन 1.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत आ सकती है। यह हमेशा लाभकारी सौदा ही होगा, क्योंकि भूमि अधिग्रहण में एक हेक्टेयर भूमि का मुआवजा लगभग ढाई से तीन करोड़ रुपये देना पड़ता है। भूमि सुधार के इस कार्यक्रम के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। इससे उपजाऊ कृषि भूमि की उपलब्धता बढ़ जाएगी और भूमि अधिग्रहण कानून बनाने में भी आसानी हो जाएगी।
Date:01-08-23
हज में अकेली महिलाएं
संपादकीय
मुसलमान महिलाओं को बिना मरहम (पुरुष) हज यात्रा करने को प्रधानमंत्री ने बड़ा बदलाव कहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हज यात्रा से लौंटी महिलाओं ने पत्र लिखे। उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में यह बताया। मोदी ने कहा ये वे महिलाएं हैं, जिन्होंने हज यात्रा बिना मरहम पूरी की। ऐसी महिलाओं की संख्या चार हजार से अधिक है। उन्होंने इसे बड़ा बदलाव करार देते हुए कहा कि पहले मुसलमान महिलाओं को बिना मरहम हज करने की इजाजत नहीं थी। इस्लाम में मरहम वह पुरुष है, जो पति या रक्त संबंधी हो। उन्होंने कहा, बीते कुछ वर्षो से हज नीति में जो बदलाव किए गए हैं, उनकी भरपूर सरहाना की जा रही है। हज से लौटीं महिलाओं ने उन्हें बहुत कुछ लिखा, साथ ही दुआएं भी खूब दीं। नि:संदेह यह धार्मिक मुसलमान महिलाओं को मिली बहुत बड़ी राहत है। वरना ढेरों महिलाएं जो ब्याहता नहीं हैं, बेवा-तलाकशुदा हैं या जिनके सिर्फ बेटियां हैं, उनके भीतर यह कसक ही रह जाती थी कि वे इस पवित्र यात्रा पर जा सकें। हज मुसलमानों का सबसे पवित्र तीर्थ है, जहां हर मुसलमान को जीवन में एक बार जाने का प्रावधान है। इसे इस्लाम में पांच फजरे में बताया गया है, बाकी के चार फजरे में कलमा, रोजा, नमाज व जकात आते हैं; जिन्हें ये महिलाएं नियमित तौर पर पालन करने को आजाद थीं, बस पाबंदियों के चलते वे हज पर नहीं जा पा रही थीं। प्रधानमंत्री की पहल और हज कमेटी की सहृदयता का यह नतीजा है कि उन सब महिलाओं की दिली इच्छा पूरी होने का मार्ग खुल सका। दरअसल, ये नियम उस वक्त के हैं, जब किसी भी तरह की यात्राएं करना जोखिमपूर्ण हुआ करता था। परिवहन के साधन सीमित थे। यात्राओं के दरम्यान ठहरने, रात्रि गुजारने, खाने और साधनों की दिकत्तें आम थीं। आधुनिक सुविधाओं और साधनों के चलते व्यावहारिक तौर पर अब महिलाओं, बुजुगरे और जरूरतमंदों के लिए भी तमाम चीजें काफी आसान हो चुकीं हैं। पापों से मुक्ति की चाह में मक्का-मदीना जाने की हसरत रखने वाली दुनिया भर में ढेरों ऐसी महिलाएं हैं, जिनका कोई मरहम नहीं है। उन सबके लिए यह किसी सपने के पूरे होने जैसा ही है। धार्मिक कट्टरताओं की आड़ में लैंगिक विषमताएं दुनिया भर में आज भी चालू हैं। यह उन्हें मिटाने और नए आयाम खोलने वाला स्वागतयोग्य कदम है, जिसकी मोदी ने सार्वजनिक तौर पर खुलकर सराहना की।