माउंट एवरेस्ट से जुड़ी पारिस्थितिकीय चुनौती

Afeias
13 Jun 2023
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सत्तर साल पहले जब तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी ने माउंट एवरेस्ट पर सफलता पाई थी, तो पूरी दुनिया ने इसे एक महान मानवीय उपलब्धि माना था। 29,000 फुट की चोटी तक पहुँचने के लिए असाधारण तप और टीमवर्क की आवश्यकता थी। 1975 में जापान के जुंको हाबेई और 1984 में भारत की बछेंद्री पाल ने इस दुर्गम पर्वत की चढाई पूरी की थी। आने वाले वर्षों में भी अनेक जांबाज विषम ऊंचाई की बाधाओं को हराकर हीरो बनते रहेंगे। लेकिन नब्बे के दशक में व्यावसायिक अभियानों के चलते वह चमक फीकी पडने लगी है।

दरअसल, हाल के वर्षों में ‘ट्रैफिक जाम’ और ‘कचरे के पहाड़ों’ की छवियों ने एवरेस्ट क्षेत्र पर पर्वतारोहण को लेकर चिंता पैदा कर दी है। इतना ही नहीं, यह पारिस्थितिकी के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। अब हालत यह है कि इस पर्वत की चढ़ाई से ज्यादा बड़ी चुनौती इसे भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने की हो गई है। जलवायु परिवर्तन एक अप्रत्याशित एक्स फैक्टर हो सकता है, लेकिन हिमालय को बचाए रखने का विकल्प मनुष्य के पास है।

नेपाली लोगों के जीवन में एवरेस्ट की चढ़ाई के व्यावसायिक अभियानों के चलते नाटकीय रूप से बदलाव आया है। लेकिन यदि समय रहते उन्होंने इसे नियंत्रित नहीं किया, तो खतरा बढ़ता जाएगा। भारतीय हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते व्यवसायीकरण और भीड़भाड़ के कारण जोशीमठ का खतरा हम देख ही रहे हैं। अभी भी समय है, जब हमें कुछ पाबंदियों के साथ भविष्य में होने वाले खतरों को टालने का प्रयास करना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 मई, 2023

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