खाद्यान्न सब्सिडी पर विचार करें
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सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि वह कोविड महामारी के दौरान शुरू की गई मुफ्त-अन्न योजना अर्थात पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को बंद करेगी। इसके बदले वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली या पीडीएस योजना को फिर से शुरू करेगी। सरकार के इस निर्णय पर विश्लेषकों की अलग-अलग राय है। कुछ का मानना है कि इससे सरकार के खाद्य सब्सिडी बिल में कमी आएगी। हालांकि बारीकि से देखने पर लगता है कि इस घोषणा से सरकार की राजकोषीय संकीर्णता और कृषि नीति की दिशा पर सवाल खड़े हो सकते हैं। आइए, इन मुद्दों को जानने का प्रयास करते हैं।
महामारी का प्रभाव –
महामारी के दौरान, सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ गया था, क्योंकि राजस्व गिर गया था। खर्च करने की आवश्यकता बढ़ गई थी। अर्थव्यवस्था के महामारी के दौर से उबरने के बाद भी राजकोषीय घाटा बढ़ा हुआ है। केंद्र और राज्यों का कुल घाटा लगभग 10% होने की संभावना है। जी-20 समूह के देशों में यह सबसे ज्यादा है। अकेले केंद्र का घाटा, जीडीपी का 6.4% होने का अनुमान है। इतना ऊंचा राजकोषीय घाटा उचित नहीं है। इसलिए अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि आगामी बजट में समेकन (कन्सॉलिडेशन) का एक ऐसा पथ प्रस्तुत किया जाएगा, जो मध्यम अवधि में घाटे को कम करेगा।
समस्या की जड़ कहाँ है?
हाल में की गई घोषणा इस तस्वीर में कहाँ फिट बैठती है, इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कुछ पृष्ठभूमि जरूरी है।
- मार्च 2020 में, सरकार ने कोविड राहत उपाय के रूप में गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की थी।
- योजना के तहत राशन कार्ड रखने वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न दिया जाता रहा। लगभग 80 करोड़ लोगों के पास राशन कार्ड है।
- इस योजना को कई बार बढ़ाकर दिसंबर 2022 तक चलाया गया।
- इस योजना ने केंद्रीय बजट पर गंभीर राजकोषीय बोझ डाला। तदनुसार, 23 दिसंबर को सरकार ने घोषणा की कि वह इसे बंद कर रही है। इसके बजाय एक वर्ष की अवधि के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा।
एक नजर में तो सरकार की यह घोषणा राजकोषीय बचत वाली दिखाई पड़ती है, क्योंकि यह गरीबों की मदद के साथ खाद्यान्न सब्सिडी बिल को कम कर देगी। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है?
- इस वर्ष की तुलना में खाद्य सब्सिडी अगले साल निसंदेह गिर जाएगी, क्योंकि पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना एक अस्थायी राहत प्रावधान था।
- इसलिए अगर खाद्य सब्सिडी की अगले साल तुलना करनी है, तो महामारी पूर्व की स्थिति से की जानी चाहिए।
- इस आधार पर मूल्यांकन करने से, घोषणा के कारण खाद्य सब्सिडी बढ़ेगी, क्योंकि (अ) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के खाद्यान्न की बिक्री की कीमतों को शून्य कर दिया गया है; और (ब) प्रदान की जाने वाली अनाज की मात्रा बढ़ा दी गई है। इससे यह योजना महामारी पूर्व की तुलना में वित्तीय बोझ को बढ़ाएगी।
घोषणा से बढता बोझ –
- सरकार उन कीमतों को बढ़ाकर बजट घाटे को कम कर सकती थी, जिन पर खाद्यान्न वितरित किए गए थे। लेकिन अब, जबकि सरकार ने मुफ्त अन्न की घोषणा कर दी है, फिर से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अनाज की कीमत लेना मुश्किल होगा।
- दूसरे शब्दों में, इस घोषणा से सरकार को मध्यम अवधि के राजकोषीय समेकन लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन होगा। घोषणा का समग्र कृषि नीति पर जबरदस्त प्रभाव पड़ने की संभावना है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी को लेकर सरकार की परेशानी और भी बढ़ जाएगी। बढ़े हुए मूल्य पर अनाज खरीदकर मुफ्त में अनाज देने से सरकारी घाटा बढ़ना तय है। अगर मूल्य नहीं बढ़ाती है, तो किसान की वास्तविक आय घटेगी। इस स्थिति में किसान अपना अनाज सरकार के बजाय मुक्त बाजार में बेचना चाहेगा। इससे सरकार का खाद्यान्न भंडार कम पड़ जाएगा, और वह की गई घोषणा को पूरा नहीं कर सकेगी।
अच्छी राजनीति, खराब अर्थ-प्रबंधन (कुछ प्रश्न) –
कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि यह घोषणा और कार्ययोजना अच्छा उपाय है, क्योंकि सरकार गरीबों की मदद कर रही है। लेकिन नए कार्यक्रम में देश की 80 करोड़ जनसंख्या शामिल होगी। तो क्या, देश की आधे से अधिक जनसंख्या गरीब है? जो जनसंख्या अपने लिए अभी तक अनाज का मूल्य दे सकती थी, उसके लिए सरकार मुफ्त खाद्यान्न योजना क्यों चलाना चाहती है?
आगामी केंद्रीय बजट में मध्यम अवधि में राजकोषीय घाटे को पूरा किया जाना ही महत्वपूर्ण बिंदु था। अब यह मुश्किल लगता है, क्योंकि ब्याज भुगतान, मजदूरी, रक्षा आदि महत्वपूर्ण मदों पर व्यय कम नहीं किया जा सकता है। सरकार की इस घोषणा ने सिद्ध किया है कि यह वोट की राजनीति के लिए अच्छा हो सकता है, परंतु आर्थिक पक्ष के लिए अच्छा नहीं है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित राजेश्वरी सेनगुप्ता के लेख पर आधारित। 2 जनवरी, 2023