नागालैण्ड की समस्या

Afeias
14 Jul 2020
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Date:14-07-20

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हाल ही में नागालैण्ड के राज्यपाल आर.एन.रवि ने राज्य में कानून-व्यवस्था के शासन के ध्वस्त‍ होने का आरोप लगाते हुए राज्य के मुख्य मंत्री को पत्र लिखा है। ज्ञातव्य हो कि नागालैण्ड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव का शासन है , जिसमें भाजपा भी सहयोगी दल है।

राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छे 371ए (1) (बी) का हवाला देते हुए यह भी कहा है कि अब राज्य में सभी स्थानांतरण और नियुक्तियां उनकी सहमति से की जाएं। सही अर्थों में राज्यपाल ने राज्य में रहने वाले विभिन्न समुदायों के प्रति चिंतित होकर ही ऐसा कदम उठाया है।

नगा क्षेत्र स्वतंत्रता के बाद से ही नगा उग्रवाद तथा उग्रवाद रोकने के लिए सरकार की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई के बीच जूझता रहा है। इससे न सिर्फ क्षेत्र का विकास बाधित हुआ है , बल्कि इस क्षेत्र के लोग हिंसा से प्रभावित भी हुए हैं। राज्य में उग्रवाद से जुड़ी समस्या  की मध्यस्थता के लिए ही 2015 में रवि को केन्द्र ने राज्य‍पाल नियुक्त  किया था। सरकार के निरंतर प्रयत्न के बावजूद नगा शांति समझौते पर कोई अंतिम वार्ता की संभावना नहीं बन पा रही है।

नागालैण्ड के उग्रवादी समूह नागालिम ईसाक मुइव: ने 23 वर्षों से लगातार सरकार से एक प्रकार का शांति समझौता कर रखा है। परंतु वह अराजकतावादी गतिविधियों से बाज नहीं आरहा है। राज्यपाल के पत्र के उत्तर में इसी समूह ने यह स्वीकार भी किया है कि वह इस बीच स्थानीय रूप से कर की वसूली करता रहा है। वैसे भी यह समूह ‘एक बड़े नागा राज्य  की परिकल्पना’ पर काम करता है व अन्य समूहों को भी भड़काता रहता है।

फिर भी , सभी विद्रोही समूहों पर लगाम लगाने के लिए एक समझौते के बिना कोई बात नहीं बन सकती और न ही इन समूहों द्वारा विकास के कार्यों में डाली जाने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है। यह अब केन्द्र पर निर्भर करता है कि वह अपने वार्ताकार और राज्यपाल के माध्यम से शासन के मामलों में राज्य सरकार के अधिकारों को बाधित किए बिना ही शांति प्रक्रिया पर धैर्यपूर्वक पुनर्विचार कर सके।

समाचार पत्र पर आधारित।