सरकारी भवनों की वास्तुकला पर एक टिप्पणी

Afeias
05 Dec 2025
A+ A-

To Download Click Here.

हाल ही में मुख्य न्यायाधीश गवई का एक महत्वपूर्ण वक्तव्य आया है। यह न्यायालयों की इमारतों की वास्तुकला से जुड़ा हुआ है। उनका मानना है कि कोर्ट की इमारतों को इंसानी पैमाने को दिखाना चाहिए। उनमें खुली पहुँच होनी चाहिए, सार्वजनिक जगहें दिखनी चाहिए और सबसे जरूरी है कि उन तक आसानी से पहुंचा जा सके।

अभी तक यानी औपनिवेशक काल से भी पहले से यह धारणा चलती चली आ रही है कि न्यायालय या कोई भी महत्वपूर्ण सरकारी कामकाज के भवनों को विशाल और सजावटी होना चाहिए। कहने का मतलब यह कि सत्ता से जुड़े भवनों की भव्यता ऐसी हो कि उसे देखते ही ‘पावर‘ का एहसास हो जाए। ज्यादातर आधुनिक लोकतंत्रों ने इस सोच को पूरी तरह अपना लिया है कि ऑफिशियल बिल्डिंग्स डरावनी दिखनी चाहिए। लेकिन अगर सरकारें लोगों की सेवा करने के लिए हैं, तो सरकारों को ऐसे भवनों से काम क्यों करना चाहिए, जो लोगों को डराती हैं?

मुख्य-न्यायाधीश का विचार सम्माननीय और विचारणीय है। विश्व में कई ऐसे उदाहरण भी हैं, जहाँ की सरकारी इमारतों को जनता को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इनमें ऑस्ट्रेलिया का हाईकोर्ट, न्यूजीलैंड का सुप्रीम कोर्ट तथा स्कैंडिनेवियाई देशों के कोर्ट शामिल हैं। चंडीगढ़ के उच्च न्यायालय का डिजाइन भी आधुनिक लोकतंत्र की छवि वाला है।

भारत को ऐसे और भी कई सरकारी भवनों की जरूरत है, जो कामकाज में आसानी पैदा करें। जहाँ नागरिकों के लिए आरामदायक वेटिंग स्पेस् हो, जो लोगों को महसूस करा सके कि वे उनके लिए ही बनाए गए हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 नवंबर, 2025