स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत का विस्तार
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हमारे डॉक्टरों और नर्सों की दुनिया भर में मांग है। इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025 रिपोर्ट में जारी डेटा के अनुसार, 2020-2021 में हमारे 75 हजार डॉक्टर दूसरे देशों में प्रैक्टिस करने चले गए। 1.2 लाख नर्स भी गईं। इसके पीछे दो कारण समझ में आते हैं –
- ग्लोबलाइजेशन के बाद से विकसित अर्थव्यवस्थाओं की ओर प्रवास का ट्रेंड बना हुआ है। इसका कारण वहाँ की वृद्ध होती आबादी के लिए हेल्थकेयर की बढ़ती मांग है। इस हिसाब से ओईसीडी यानि ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट देशों में सर्विस कर रहे एक चौथाई डॉक्टर प्रवासी हैं। इनमें भी भारत के डॉक्टर और नर्स प्रवासी हेल्थ वर्कर्स का सबसे बड़ा समूह बनाते हैं।
- ये देश जानते हैं कि प्रवास-विरोधी नीति (विशेषरूप से स्वास्थ्य क्षेत्र में) इनके हित में नहीं है। इसके चलते ये भारत जैसे देशों से स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं की भर्ती के लिए नीति तैयार कर रहे हैं। रिपोर्ट में बेल्जियम की नीति के बारे में बताया गया है, जो जेरियाटिक देखभाल के लिए भारतीय नर्सों की भर्ती करती है और प्रशिक्षण देती है।
सवाल यह है कि भारतीय डॉक्टरों और नर्सों की उच्च वैश्विक मांग के साथ ही हम अपने देश को ही टॉप मेडिकल दूरिज्म स्पॉट क्यों नहीं बना पा रहे हैं?
कुछ बिंदु –
- सरकार मेडिकल कॉलेजों की पारिस्थितिकी को ठीक करे।
- ऑल इंडिया मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम को विकेंद्रीकृत करे।
- डॉक्टरों की संख्या में राज्यवार अंतर को भरने की जरूरत है। इसी प्रकार से, शहरी – ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अंतर को बराबर किया जाना चाहिए।
- निजी अस्पताओं में गैर जरूरी प्रोसीजर करने और ज्यादा पैसे लेने के मामलों पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए।
- फॉलोअप में सुधार होना चाहिए।
फिलहाल, भारत मेडिकल टूरिज्म में 10वें नंबर पर है। 2035 तक इसके 58 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इस हेतु सुधार किए जाने चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 5 नवंबर, 2025