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सिंधु लिपि की अनसुलझी पहेली
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सिंधु घाटी सभ्यता की खोज को एक शताब्दी पूरी हो चुकी है। एक बड़ी बात यह है कि अभी तक इस युग की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। इस सभ्यता की खोज के शताब्दी वर्ष के आयोजन में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस लिपि को पढ़ने वाले को बड़ा पुरस्कार देने की घोषणा भी की है।
कुछ बिंदु –
- सिंधु घाटी सभ्यता की खोज 1924 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन प्रमुख जॉन मार्शल ने की थी।
- 3000-1500 ई.पू. के दौरान आधुनिक भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में दस लाख से अधिक वर्ग किलोमीटर में फैली यह सभ्यता, मेसोपोटामिया, मिस्र और चीन की बेहतर ज्ञात सभ्यताओं के समान ही जटिल थी।
- लगभग 20 वर्ष पहले इसकी लिपि के बारे में पश्चिमी विद्वानों ने पक्ष और विपक्ष में विचार दिए थे। इसमें कुछ भारतीय विद्वानों की राय थी कि यह ‘प्रोटो-द्रविड़‘, ‘गैर-आर्यन‘ और ‘पूर्व-आर्यन‘ लिपि थी। तमिलनाडु के भित्तिचित्रों और तमिल-ब्राह्यी लिपि के बर्तनों के अवशेषों को राज्य सरकार शोध का विषय बनाकर, उनका डिजिटल दस्तावेज बनवाना चाहती है।
- यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि मुहरों की लिपि के बारे में पूरा डेटाबेस सार्वजनिक डोमेन में लाया जाना चाहिए। इसका अध्ययन बिना किसी हस्तक्षेप के किया जाना चाहिए।
- लिपि के रहस्य को उजागर करने के लिए श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देशों के बीच समन्वय होना चाहिए। इस प्रकार का अध्ययन राजनीतिक मतभेदों को दूर रखकर किया जाना चाहिए। इस प्रकार के सांस्कृतिक अध्ययन के सफल होने से भारत सहित दुनिया के बड़े भाग को बहुत दुर्लभ जानकारी मिल सकती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 जनवरी, 2025
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