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परिसीमन का प्रश्न
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संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत संसद को परिसीमन का अधिकार है। इसमें दो मुद्दों के समाधान हेतु संसद द्वारा अभिकरण बनाएं जाते हैं
i) लोकसभा और विधानसभा में कितने-कितने जनप्रतिनिधि होने चाहिए, तथा
ii) लोकसभा और विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं एक उनके आकार-प्रकार में क्या-क्या बदलाव जरूरी हैं।
1952 से प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन किया गया था। लेकिन 42वें संविधान संशोधन द्वारा 25 वर्ष तक परिसीमन पर रोक लगा दी गई। 2002 में परिसीमन आयोग का गठन तो हुआ, किन्तु 84 वें संविधान संशोधन 2001 के द्वारा 2020 तक M.P. और M.L.A की संख्या बढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन आंशिक परिसीमन किया गया। 2006 में S.T. तथा S.T. की सीटें बढ़ाई गईं।
प्रतिनिधित्व की समानता का सिद्धांत –
50 वर्षों से भी अधिक समय से पूर्ण परिसीमन नहीं हुआ है। भारत में एक सांसद लगभग 25 लाख और एक विधायक लगभग 5-7 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि इंग्लैंड में 1 लाख लोगों पर 1 सांसद तथा अमेरिका में 7 लाख लोगों पर 1 सांसद है। ज्यादा जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद तथा कम जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद के मतों का मूल्य समान होता है, जिससे समान प्रतिनिधित्व का सिद्धांत कमजोर हो जाता है।
परिसीमन के बाद दक्षिण भारत की सीटें कम होंगी और उत्तर भारत की सीटें बढ़ेंगी।
नई संसद में कुल 888 सीटे हैं। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के कारण लोकसभा में महिलाओं के लिए 231 सीटें आरक्षित होंगी। अनुच्छेद 330(2) के तहत राज्य की आबादी के हिसाब से SC व ST की सीटें भी बढ़ेंगी।
अगले परिसीमन के लिए क्या करें ?
- आगामी परिसीमन के लिए लोकसभा में अधिकतम सीटों की संख्या तय कर उन्हें राज्यों को आवंटित करने का फार्मूला बनाना होगा।
- 2026 में अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से कोई सांसद कितनी जनसंख्या का प्रतिनितधित्व करेगा, यह तय करना होगा।
- ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिसमें जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्य पुरस्कृत हों, क्योंकि दक्षिण भारत अपनी जनसंख्या बढ़ाने की बात कर रहा है।
- विशेषज्ञों से परामर्श लेना चाहिए।
परिसीमन में पारदर्शिता और परामर्श जरूरी है, क्योंकि अनुच्छेद 329 परिसीमन के मामलों में न्यायपालिका के हस्तक्षेप को अनुमति नहीं देता।
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