‘मिडिल इनकम ट्रैप’ में फंसता जा रहा है भारत
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परिचय –
भारत की आबादी के शीर्ष 15 से 50% लोगों की आय 15 वर्षों से स्थिर है। गरीबों की आय में सब्सिडी व दूसरे कारणों से वृद्धि हुई है। 15 करोड़ से अधिक लोग न शिक्षा पा रहे हैं, और न ही रोजगार की तलाश कर रहे हैं। कृषि में रोजगार बढ़ा है, जबकि विनिर्माण में रोजगार कम हुआ है। सबसे ज्यादा उत्पादन भी अनौपचारिक व असंगठित क्षेत्र में हुआ है।
यह सब दर्शाता है कि हम मिडिल इनकम ट्रैप में फंसते जा रहे हैं। भारत में संरचनात्मक मांग कम हो रही है। इसके लिए जरूरी है कि गरीब भौगौलिक क्षेत्र में उन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए जिसका शीर्ष 50% (मध्यमवर्ग भी) उपयोग करता हो। शीर्ष 15% लोगों की आय में वृद्धि हो रही है। मध्यमवर्ग की आधार देने वाली चीजें नहीं बिक रही हैं। मध्यमवर्ग की आय कम है। आयकरदाताओं पर भी करों का असहनीय बोझ है।
कारण –
- शेयर बाजार में संरचनात्मक मंदी इसका एक कारण है। इनमें सूचीबद्ध कंपनियों के कुल राजस्व के अनुपात में उनका लाभांश बढ़ा है, जबकि वास्तविक वेतन स्थिर है या घट रहा है। कर्ज-मुक्ति के लिए करों में छूट व प्रोत्साहन का प्रयोग किया जा रहा है। इसीलिए शेयर बाजार की समृद्धि को भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्धि से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
- हमारा देश आम भारतीयों की मांग पूरी करने में असमर्थता व्यक्त करता है। जबकि वह अमीरों के लिए उत्पादन करता है। अधिकांश उद्यमियों का लक्ष्य रेट सीकिंग हो गया है अर्थात् नीतियों एवं संसाधनों के दोहन से अपनी संपत्ति बढ़ाना।
- हम अनौपचारिक क्षेत्रों से कम गुणवत्ता वाले समान का उपयोग करते हैं, औपचारिक अर्थव्यवस्था में उत्पादित गुणवत्तायुक्त वस्तुओं का नहीं। अनौपचारिक क्षेत्रों की व्यापकता असफल अर्थव्यवस्थाओं को सफल अर्थव्यवस्थाओं से अलग करती है।
- हमारे यहाँ मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी सब्सिडी दी जाती है, जिससे सार्वजनिक निवेश व गुणवत्तायुक्त समान देने की हमारी क्षमता घटती जाती है।
ये कारण प्रति व्यक्ति कम आय पर भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषता बन चुके हैं, जिसमें सुधार आवश्यक है।
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