सार्वजनिक संस्थानों के कड़वे अनुभव से जगता अविश्वास

Afeias
09 Dec 2024
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हाल ही में प्रयागराज के यूपीएससी कार्यालय के बाहर छात्रों का विरोध प्रदर्शन हुआ है। इसके पीछे लोकसेवा आयोग के उस निर्णय को मुद्दा बनाया गया था, जिसमें उसने प्रांतीय सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा को दो दिनों में विभाजित करने का निर्णय लिया था। यह मुद्दा अपने आप में विरोध का कारण नहीं माना जा सकता है। दरअसल, युवाओं में सरकारी नौकरी के लिए बेताबी है। इनकी आपूर्ति मांग से बहुत कम है। इसके अलावा भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार चरम पर है। युवाओं का आक्रोश इस व्यवस्था के प्रति है।

एक और घटना में झांसी के एक सरकारी अस्पताल की नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की मृत्यु हो गई। उपमुख्यमंत्री ने सुरक्षा उपायों में गंभीर खामियों की सभी रिपोर्टों को झूठा करार दिया।

तीसरे उदाहरण में नरेगा आधारित भुगतान में सुधार के बजाय लाखों लोगों को हटा दिया गया।

सार्वजनिक संस्थानों की भूमिका –

  • सार्वजनिक संस्थाओं से लोगों की अपेक्षा रहती है कि वे कुशलता के साथ सेवाएं प्रदान करें।
  • इस प्रक्रिया में सार्वजनिक धन का दुरूपयोग न हो।
  • इससे जनता में उनके प्रति विश्वास जगता है। यह विश्वास समृद्धि और लोकतंत्र दोनों के लिए अमूल्य है।

सरकार को इन संस्थानों में होने वाली अव्यवस्थाओं को गंभीरता से लेना चाहिए, और इन संस्थाओं के प्रति विश्वास को पुनः स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 नवंबर, 2024