विरासत और संपत्ति कर आर्थिक परिवर्तन के सामाजिक नतीजो के लिए गलत है
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हाल ही में विरासत और संपत्ति कर की चर्चा जोरों पर है। केवल भारत ही नहीं, बल्कि इसकी चर्चा अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य में भी की जा चुकी है। जो बाइडन ने इस कर की वकालत की थी, जिसका कड़ा विरोध किया गया।
लाभों का असमान प्रवाह है – पूरी दुनिया संचार प्रौद्योगिकी या आईटी के नेतृत्व में एक नई औद्योगिक क्रांति के बीच में है। यह पिछली औद्योगिक क्रांति के पैटर्न का ही अनुसरण कर रही है। तकनीकी परिवर्तन के लाभ असमान रूप से दिए जाते हैं, या प्रवाहित होते हैं। इसलिए क्योंकि आम तौर पर, इसमें श्रम की न्यूनतम भूमिका होती है। तथा नई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानव कौशल का विकास करने में समय लगता है। इस परिवर्तन को संभालने का प्रयास सरकारें करती हैं, लेकिन कभी-कभी वे भी गलत नीतियों को लेकर सामने आती हैं।
धन एक मृगतृष्णा – वित्तीय बाजार में इस परिवर्तन के प्रमुख लोगों या कंपनियों या स्टार्टअप्स को शेयर कीमतों में अत्यधिक मुद्रास्फीति के माध्यम से एक तरह से पुरस्कृत कर दिया जाता है। लेकिन क्या यह टिकाऊ होता है या मात्र एक बबल या गुब्बारा है? यह काल्पनिक धन ही होता है, जिसे बाइडन या सैम पित्रोदा जैसे नेता संपत्ति कर का प्रस्ताव देकर, अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए काम में लाते हैं। वे केवल काल्पनिक धन पर कर लगाने की बात कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक वाहन टेस्ला के मालिक इलॉन मस्क को लें। दो वर्ष पहले, उनकी काल्पनिक संपत्ति या लाभ बहुत ज्यादा था। उनके शेयर के नीचे गिरते ही उनकी कुल संपत्ति बहुत कम रह गई है।
असमानता ही वास्तविक है – लाभ के प्रवाह की असमान गति, वास्तविक जगत के परिणाम हैं। भारत के संदर्भ में यह चार दशकों की मजबूत जीडीपी वृद्धि और रोजगार सृजन की कमजोर नीतियों के संबंध के रूप में सामने आई है। बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास हुआ, लेकिन कौशल के अभाव में उतना रोजगार सृजन नही हो पाया है। अतः चुनावी माहौल में कल्याणकारी सरकार की छवि को प्रस्तुत करने का अवसर सभी राजनीतिक दलों को मिल रहा है, और वे इसे भुनाने के लिए अपने-अपने प्रस्ताव ला रहे हैं।
लोग मायने रखते हैं – लोक कल्याण के लिए सब्सिडी देना एक अल्पकालिक समाधान है। विरासत और संपत्ति कर जैसे उपायों से पुनर्वितरण या लोककल्याण का विचार भी ठीक नहीं है। एक मात्र उपाय नीतियों का पुर्नमूल्यांकन है। नीतियां ऐसी हो, जो श्रम-आधारित विनिर्माण और मानव कौशल का विकास कर सकें। कौशल विकास ही अंतिम समाधान है, संपत्ति कर नहीं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 अप्रैल, 2024